Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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श्रावणः २४८पः पः
निजपद देखाडीने आचार्यदेव जगाडे छे
हे जीवो! हवे तो जागो
(दक्षिणयात्रा दरमियान अमरावतीमां
पू. गुरुदेवनुं प्रवचनः ता. प–४–प९)
अनादिकाळथी पोताना स्वरूपने भूलीने आजसुधी जीवे अज्ञानथी संसारभ्रमण कर्युं छे, रागमां
तन्मय थईने सूतेला ते जीवने जागृत करतां आचार्यदेव कहे छे के अरे जीवो! अज्ञानथी अंध थईने
रागने ज पोतानुं पद मानीने तेमां तमे सूता छे, परंतु ते तमारुं पद नथी....नथी....माटे हवे तो तमे
जागो.....ने राग वगरनुं शुद्ध चैतन्यपद तमारुं छे–तेने ओळखो. रागने निजपद मानीने अत्यार सुधीनो
काळ संसारपरिभ्रमणमां गुमाव्यो....परंतु हवे तो जागो.........ने आ शुद्धचैतन्यमय जे निजपद छे तेने
संभाळो.–
आसंसारात् प्रतिपदमिदं रागिणो नित्यमत्ताः
सुप्त यस्मिन्नपदमपदं तद्विबुध्यध्वमंधा।
एतैतेतः पदमिदमिदं शुद्धचैतन्यघातोः
शुद्ध शुद्ध स्वरसभरतः स्थायिभावत्वमेति।।
(श्री समयसार कळश १३८)
निज पदने चूकीने जीवने बहारनो ने रागनो महिमा आव्यो छे, पण चिदानंदस्वभावरूप निजपद
रागथी अने संयोगथी पार छे तेनो महिमा कदी आव्यो नथी.
आचार्यदेव कहे छेः अरे आत्मा! अत्यारसुधी तें शुं कर्युं? जेम कोई मोटो राजा दारूना घेनमां
मस्त बनीने उकरडा जेवी मलिन जग्यामां सुए ने तेमां आनंद माने....पण ते कांई राजानुं पद नथी,
राजानुं पद तो सोना–रत्ने जडेलुं सिंहासन छे. तेम त्रण लोकनो श्रेष्ठ पदार्थ एवो आ चैतन्यराजा
निजचैतन्यपदने भूलीने, रागादिने ज पोतानुं स्वरूप मानतो थको ते रागना घेनमां मस्त थईने
उकरडानी जेम विकारी भावोमां सूतो छे ने तेमां सुख माने छे....पण ते रागादि कांई चैतन्यराजाने
रहेवानुं खरूं पद नथी. चैतन्य राजानुं खरुं पद तो शुद्धचैतन्यधातुनुं बनेलुं, ने आनंदरूपी रत्नोथी जडेलुं
छे. आचार्यदेव ते पद बतावीने जीवने जगाडे छे के–
अरे अज्ञानी अंध प्राणीओ! अनादि संसारथी मांडीने आजसुधी रागने निजपद मानीने तमे
मोहनिद्रामां सुता...हवे तो जागो! मनुष्य थया ने आंखो मळी, परंतु अंतरना चैतन्यचक्षु खोलीने निजपदने जे
देखतो नथी ते छती आंखे अंध छे.....आचार्यदेव कहे छे के अरे अंध प्राणीओ! हवे तो तमारां ज्ञानचक्षुने
खोलीने तमारा चैतन्यनिधानने नीहाळो!
राग अने चैतन्यनुं भेदज्ञान करावीने आचार्यदेव कहे छे के अरे जीवो! आ बाजु आवो..... आ बाजु
आवो....राग तरफ न जाओ.......पण चैतन्य तरफ आवो.....राग तमारुं पद नथी, तेमां तमारी शोभा नथी. आ
राग वगरनुं शुद्धचैतन्य ते ज तमारुं पद छे ने तेमां ज तमारी शोभा छे.... माटे तमे आ शुद्ध चैतन्यने ज
निजपद तरीके देखो.....ने आ तरफ आवो......आ तरफ आवो. अंतरमां तमारा चैतन्यपदने देखतां ज तमारा
जन्ममरणनो अंत आवी जशे ने अपूर्व सिद्धपदनी प्राप्ति थशे.