ः ४ः आत्मधर्मः १९०
भावरूपी अंकूरा ऊग्या छे अने असंख्यप्रदेशी चैतन्यभूमिमां
सर्वत्र आनंद–आनंद छवाई गयो छे....अहो! आजे मारा
सम्यक्त्वरूपी श्रावण आव्यो छे.
आवी आनंदकारी सम्यक्त्वरूपी वर्षाऋतुमां सदा लयलीन
रहेवानी भावनापूर्वक अंतिम कडीमां कवि कहे छे के–
भूल–धूल कहीं मूल न सूझत, समरस–जल झर लायो;
‘भूधर’ कर्यो नीकसे अब बाहिर, जिन निरचू घर पायो......
...... अब मेरे समकित–सावन आयो.......
आत्मामां सम्यक्त्वरूपी वर्षा थतां, भूलरूपी धूळ क्यांय
ऊडती देखाती नथी अने सर्वत्र समरसरूपी झरणां फूटी नीकळ्या
छे. माटे, कलाकार कवि (भूधरदासजी) कहे छे के, हवे भू–धर
बहार केम नीकळशे?–हवे अमे अमारा निजघरथी बहार नहि
नीकळीए, केमके ‘निरचू’ कदी पण नहि चुंवे एवुं घर–
अविनश्वर आध्यात्मिक स्थान अमे प्राप्त करी लीधुं छे; तेथी हवे
तो त्यां ज रहीने अमे सम्यक्त्वरूपी श्रावणनो आनंद भोगवशुं.
–आज अमारे सम्यक्त्वरूपी श्रावण आव्यो छे.
––
तेनो जन्म सफळ छे
मुक्त्वा कायविकारं यः शुद्धात्मानं मुहुर्मुहः।
संभावयति तस्यैव सफलं जन्म संसृतौ।।
(नियमसार कळश ९३)
कार्यविकारने छोडीने जे फरीफरीने शुद्धात्मानी संभावना
(सम्यक्भावना) करे छे, तेनो ज जन्म संसारमां सफळ छे.
पहेलां तो कायाथी भिन्न चिदानंद स्वरूपनुं भान कर्युं छे, ते
उपरांत कायाथी उपेक्षित थईने वारंवार अंतरमां शुद्धात्मानी
सन्मुख थईने तेनी भावना भावे छे, ते धर्मात्मानो अवतार
सफळ छे; तेणे जन्मीने आत्मामां मोक्षनो ध्वनि प्रगटाव्यो,
आत्मामां मोक्षना रणकार प्रगट कर्यां....तेथी तेनो जन्म सफळ छे.
अज्ञानपणे तो अनंत अवतार कर्यां. , ते बधा निष्फळ गया, तेमां
आत्मानुं कंई हित न थयुं. चिदानंदस्वरूपनुं भान करीने जे
अवतारमां आत्मानुं हित थयुं ते अवतार सफळ छे.