Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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श्रावणः २४८पः ३ः
समकित–श्रावण आयो रे...
सम्यग्दर्शन थतां आत्मामां चैतन्यरसनी धारा वरसे छे,
अज्ञानदशानां तीव्र आतापो शमी जाय छे...अनुभवरूपी
झबकारा थाय छे.....आत्मभूमिमां साधकभावरूपी अंकूरा जागे
छेे....... भ्रमणारूपी धूळ ऊडती नथी ने असंख्य आत्मप्रदेशे
सर्वत्र आनंद आनंद छवाई जाय छे.–इत्यादि प्रकारे सम्यग्दर्शनने
श्रावण मासनी–वर्षाऋतुनी उपमा आपीने कवि भुधरदासजी केवुं
भाववाही वर्णन करे छे ते नीचेना काव्यथी मालूम पडशे.
(श्रावण मासमां प्रसिद्ध थतुं आ काव्य अध्यात्मरसिकोने विशेष
प्रिय लागशे.)
अब मेरे समकित–सावन आयो.....बीति कुरीति–मिथ्यामति ग्रीषम,
पावस सहज सुहायो.......अब मेरे समकित–सावन आयो,
आज अमारे सम्यक्त्वरूपी श्रावण आव्यो छे; कुरीति
अने मिथ्यामतिरूपी ग्रीष्मकाळ हवे वीती गयो छे अने
आत्मिकरसनी सहज वर्षा शोभी रही छे.–आजे मारे एवो
सम्यक्त्वरूपी श्रावण आव्यो छे.
अनुभव–दामिनी दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो.
बोले विमल विवेक–पपीहा, सुमति सुहागिन भायो.....
..... अब मेरे समकित–सावन आयो........
सम्यक्त्वरूपी श्रावण आवतां, आत्म–अनुभवीरूपी
वीजळी झबकवा लागी छे अने सम्यक्रुचिरूपी घनघोर घटाथी
आत्मिक आकाश छवाई गयुं छे; विमळ विवेकरूपी पपैया ‘पीयु
पीयु’ बोले छे अने तेनो पीयु पीयु मधुरध्वनि सुमतिरूपी
सुहागिनीने बहु प्रिय लागे छे.–आजे अमारे एवो सम्यक्त्वरूपी
श्रावण आव्यो छे.
गुरु धुनि–गरज सुनत सुख उपजत, मोर–सुमन विहसायो..........
साधक भाव–अंकूर ऊठे बहु, जिन तित हरष सवायो.......
अब मेरे समकित–सावन आयो............
सम्यक्त्वरूपी वर्षाऋतुमां, श्री वीतराग गुरुना ध्वनिरूप
मेघगर्जना सांभळीने सुख ऊपजे छे अने सुबुद्धिजनोना
चित्तरूपी मयूर विकसित थयो छे; आत्मक्षेत्रमां साधक