Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
वर्ष सोळमुं संपादक श्रावण
अंक १० मो रामजी माणेकचंद दोशी २४८प
आत्मधर्म
(मासिक)
मुमुक्षु जीवोने मुक्तिनो राह देखाडे छे.
परमपूज्य गुरुदेवना प्रवचनोमांथी पसंद करेला उत्तम आध्यात्मिक
लेखो, उपरांत तीर्थयात्रा वगेरेना समाचारो–संस्मरणो–चित्रो वगेरे प्रसिद्ध
करतुं आ मासिक आप जरूर वांचो अने आप ग्राहक न हो तो–
जरूर ग्राहक बनो
वार्षिक लवाजम चार रूपिआ
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ– (सौराष्ट्र)
चालु ग्राहकोने बे वात
(१) आप नवा वर्षमां ग्राहक तरीके चालु रहीने बीजा जिज्ञासुओने
पण ग्राहक थवानी भलामण करशो. चालु ग्राहकोमांथी एक पण ओछा न
थाय, एवी आशा राखीए छीए.
(२) –आपनुं ग्राहक तरीकेनुं लवाजम बनी शके तो पर्युषण
दरमियान, अथवा तो छेवट दिवाळी पहेलां जरूर भरी देशो.
सुर्वणपुरी–समाचार
सोनगढमां श्रावण सुद पांचमथी प्रौढ शिक्षणवर्ग चाली रह्यो छे. सौराष्ट्र
अने गुजरात उपरांत ईंदोर, उज्जैन, अशोकनगर, कोटा, ग्वालीअर, परतवाडा,
दिल्ही, भोपाल, सनावद, नारायणगंज, गुना मलकापुर, मंदसोर, शिवगंज वगेरे
अनेक गामोथी आवेला जिज्ञासुओ उत्साह– पूर्वक तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करी
रह्या छे. हंमेशा बे वखत गुरुदेवना प्रवचनो, बे वखत शिक्षण– वर्ग, रात्रे
तत्त्वचर्चा, उपरांत सवारमां जिनेन्द्रपूजन अने सांजे भक्ति, एम भरचक
कार्यक्रम रहे छे, ते सिवायना वखतमां पण परस्पर चर्चावार्ता चालु ज होय छे.
गामोगामना मुमुक्षुओनो मेळो भेगो थयो होवाथी अने भरचक धार्मिक
प्रवृत्तिओथी सोनगढनुं वातावरण कंईक अंशे पर्युषण जेवुं ज लागे छे. ईंदोरना
सर हुकमीचंदजी शेठना पुत्री सा. चंद्रावतीबेन सोनगढ आवीने लाभ लई रह्या
छे. तेमना पिताजीनी माफक तेओ पण सोनगढना वातावरणथी खूब प्रसन्न थया
छे, ने घणा भावपूर्वक लाभ लई रह्या छे. आ रीते गामोगामथी बीजा पण
अनेक जिज्ञासुओ सोनगढ आवीने लाभ लई रह्या छे.