Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ८ः आत्मधर्मः १९०
* वीतरागी मोक्षमार्ग *
रखियाल गाममां पू. गुरुदेवनुं प्रवचनः वैशाख सुद प मंगळवार
आ नियमसारनी त्रीजी गाथा वंचाय छे, तेमां आचार्यदेव कहे छे के
छे मार्गनुं ने मार्गफळनुं कथन जिनवरशासने,
त्यां मार्ग मोक्षोपाय छे ने मार्गफळ निर्वाण छे.
मार्ग एटले रत्नत्रय–निरपेक्ष आत्मतत्त्वना आश्रये प्रगटता सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नत्रय ते
मोक्षनो मार्ग छे. ने पूर्ण ज्ञानानंदनी प्राप्ति ते तेनुं फळ छे. शुद्ध आत्मतत्त्वना भान वगर चारे गतिमां जीवे
अनंता अवतार कर्या छे. अने नवा नवा देह धारण कर्या छे... देह तो विनाशी छे, आत्मा अविनाशी
छे.....अनंत शरीरो आव्या ने गया पण आत्मा तो तेनो ते ज अविनाशी रह्यो छे.
अरे आत्मा! तारा अविनाशी स्वरूपना भानवगर शुभरागथी मुनिव्रत पण तें अनंतवार पाळ्‌या, पण
चैतन्यनो अतीन्द्रिय आनंद तने अंशमात्र न मळ्‌यो. आत्माना सम्यग्ज्ञान वगर क्यांय जगतमां शांतिनो अंश
पण नथी, स्वर्गनी ईंद्राणी वगेरे वैभवमां पण सुख नथी. तेथी छहढाळामां पं. दोलतरामजी कहे छे के
मुनिव्रतधार अनंतवार ग्रीवक ऊपजायो,
पै निज आतमज्ञान बिन सुख लेश न पायो.
दुःखनुं कारण कोई बीजुं नथी पण पोताना स्वरूपनुं अज्ञान ज अनंतदुःखनुं कारण छे.
‘जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो दुःख अनंत’
अनंतदुःख केम पाम्यो? के पोतानुं स्वरूप न समज्यो तेथी; ते दुःखथी छूटवानो मार्ग शो? के मार्ग तो
शुद्धरत्नत्रय छे. शुद्धरत्नत्रय एटले निश्चय रत्नत्रय, वीतरागी रत्नत्रय; साथे जे अशुद्धता अथवा
व्यवहाररत्नत्रयरूप राग छे ते मोक्षमार्ग खरेखर नथी; मोक्षमार्गनी साथे होवा छतां ते खरेखर मोक्षमार्ग
नथी. पांच तोला सोनानी अंदर त्रण तोला लाख भरी होय तो आठ तोलानो दागीनो एम कहेवाय, पण त्यां
दागीनानी किंमत करती वखते पांच तोला सोनानी ज किंमत गणाय छे, साथेनी त्रण तोला लाखनी किंमत
गणाती नथी; तेम मोक्षमार्गरूपी जे दागीनो, तेमां निश्चयरत्नत्रयनी साथेना रागने पण व्यवहाररत्नत्रय कह्या,
परंतु मोक्षमार्गनुं वास्तविक स्वरूप विचारतां तो निश्चयरत्नत्रय ज मोक्षमार्ग छे, जे राग छे तेनी किंमत
मोक्षमार्गमां नथी अर्थात् ते रागनी गणतरी मोक्षमार्गमां नथी, एटले व्यवहाररत्नत्रय ते खरो मोक्षमार्ग
नथी, शुद्धरत्नत्रय ते ज साचो मोक्षमार्ग छे.
–आवो मोक्षमार्ग कई रीते प्रगटे?
शुं रागथी ते मोक्षमार्ग प्रगटे? ना;
शुं देहनी क्रियाथी ते मोक्षमार्ग प्रगटे? ना;
मोक्षमार्ग तो शुद्ध आत्माना आश्रये ज प्रगटे छे; ते सिवाय परथी ते निरपेक्ष छे, व्यवहारना रागथी
पण ते निरपेक्ष छे. आ रीते परभावोथी अत्यंत निरपेक्ष होवाथी मोक्षमार्ग परम वीतराग छे.
भाई, संसारना कलेशमां आत्मानी साची शांति पामवी होय तो आ ज तेनो रस्तो छे. धीरो थईने
अंतरमां आ मार्गनो तुं विचार कर.....आ सिवाय बीजा उपाये क्यांय तारो आरो आवे तेम नथी. जेम
आंधळो दोट मूके ने फरीफरीने हतो त्यां आवीने ऊभो रहे, तेम देहनी क्रियाथी ने रागथी धर्म थशे एम मानीने
अज्ञानथी अंध जीवे अनादिथी दोट मूकी छे पण हजी सुधी तेना हाथमां कांई आव्युं नथी, ज्यां हतो त्यां
संसारमां ने संसारमां ज ते ऊभो छे.
आचार्यदेव कहे छे केः हे भाई! तुं जराक ज्ञानचक्षु खोलीने जो तो खरो के तारी शांति क्यां छे? शुं जड
देहमां तारी शांति भरी छे? शुं रागमां तारी शांति भरी छे? ना, भाई! बहारमां क्यांय तारी शांति नथी, ने
बहिर्मुखवलणमां पण क्यांय तारी शांति नथी; तारी शांति तारा स्वभावमां छे, ते स्वभावमां अंतर्मुख थवुं ते
ज शांतिनो उपाय छे.