Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १८ः आत्मधर्मः १९२
छे. कोई मुनि आहार माटे जाय, ने कोई मुनि आत्मध्यानमां एकाग्रपणे बेठा होय–आम एक बीजाथी
निरपेक्षपणे वीतरागभावथी रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गने साधे छे. तेम जगतनी गूफामां आ जीवादि छ
प्रकारनां द्रव्यो छे; तेओ स्वतंत्र, एक बीजाथी निरपेक्षपणे पोतपोतानी परिणतिमां परिणमी रह्या छे,
कोईने कोईनी पराधीनता नथी. आम तत्त्वोनी स्वतंत्रता जाणीने परथी निरपेक्षपणे पोताना
चिदानंदस्वरूपने ध्याववुं ते मोक्षनो उपाय छे. शुद्ध चैतन्यनुं ध्यान कहो, स्वानुभूति कहो के मोक्षमार्ग कहो,
ते बधुं एक ज छे.
समयसारना मांगळिकमां ज आचार्यदेव कहे छे के
नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते
जुओ, स्वानुभूति ते ज आत्मानी प्रसिद्धिनो उपाय छे–एम कह्युंः राग ते आत्मानी प्रसिद्धिनो उपाय
नथी. रागवडे तो कर्मबंधन थाय छे. ज्ञानने अंतरमां वाळीने रागथी पार चिदानंदस्वरूपनो स्वानुभव करवो ते
ज मुक्तिनो उपाय छे.
अहीं मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र उपर करोडो मुनिवरो हारबंध (समश्रेणीए–सिद्धपणे) बिराजे छे.
जेम सम्मेदशीखरजी सिद्धिधामनी उपर अनंता तीर्थंकरो अने मुनिवरो सिद्धपणे बिराजी रह्या छे, तेम
अहींथी मुक्ति पामेला करोडो मुनिवरो पण बराबर आ मुक्तागिरि धामनी उपर सिद्धक्षेत्रमां अत्यारे
सिद्धपणे बिराजी रह्या छे; तीर्थयात्रामां एवा मुनिओनुं अने सिद्धभगवंतोनुं स्मरण करीए छीए.
आत्मानी पूर्णानंदसिद्धदशा सादिअनंत ज्यांथी प्रगटी ते सिद्धिधाम छे, अने तेना स्मरण माटे
सिद्धिधामनी यात्रा करे छे. अहो! अहींथी मुनिवरोए क्षपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान लीधुं, अने अहींथी
मुनिओ–तीर्थकरो ऊर्ध्वगमन करीने सिद्धालयमां जईने बिराज्या.....आम धर्मात्मा जीवो आत्मानी
पूर्णदशानुं स्मरण करीने तेनी भावना भावे छे.
शुद्ध चैतन्यस्वरूपनो आदर करी करीने ज मुनिवरो मोक्ष पाम्या छे. धर्मात्मानुं कार्य शुं? के शुद्ध चैतन्य
छे.
शुद्ध चैतन्यस्वरूपमां रागनी नास्ति ज छे; एटले ज्यां शुद्धचैतन्यस्वरूपनो आदर कर्यो त्यां रागनो
आदर छूटी ज जाय छे. शुद्धचैतन्यनी अस्तिमां ‘रागने छोडुं’ एवो नास्तिपक्षनो विकल्प पण नथी.
शुद्धचैतन्यना आदरमां राग छूटी जाय छे, परंतु ‘राग छोडुं’ एवा विकल्पथी राग छूटतो नथी.
अहींथी जे कोई मुनि मोक्ष पाम्या, के आखा मनुष्यक्षेत्रमांथी जे कोई मुनि मोक्ष पाम्या, पामे छे के
पामशे, ते बधाय मुनिओ शुद्धचैतन्यनी आराधनाथी रत्नत्रय प्रगट करी करीने ज मुक्ति पाम्या छे,
आहा! मुनिदशा शुं चीज छे!! वारंवार निर्विकल्प थईने स्वानुभूतिमां अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करे
छे. स्वानुभूति करतां करतां चैतन्यगोळाने रागथी तद्न जुदो पाडीने केवळज्ञान प्रगट करे छे. एवा ३ाा
करोड मुनिवरो आ मुक्तागिरि क्षेत्रथी मुक्ति पाम्या....ने अत्यारे उपर सिद्धपणे तेओ बिराजी रह्या छे.
ते सिद्ध भगवंतोने अमारा नमस्कार हो.
मुक्तागिरिनी यात्रा करावीने.....मुक्तिनो मार्ग देखाडनार....मुक्तिपुरीना
पथिक हे कहान गुरुदेव! अमने पण मुक्तिपंथमां दोर्या करो.