निरपेक्षपणे वीतरागभावथी रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गने साधे छे. तेम जगतनी गूफामां आ जीवादि छ
प्रकारनां द्रव्यो छे; तेओ स्वतंत्र, एक बीजाथी निरपेक्षपणे पोतपोतानी परिणतिमां परिणमी रह्या छे,
कोईने कोईनी पराधीनता नथी. आम तत्त्वोनी स्वतंत्रता जाणीने परथी निरपेक्षपणे पोताना
चिदानंदस्वरूपने ध्याववुं ते मोक्षनो उपाय छे. शुद्ध चैतन्यनुं ध्यान कहो, स्वानुभूति कहो के मोक्षमार्ग कहो,
ते बधुं एक ज छे.
ज मुक्तिनो उपाय छे.
अहींथी मुक्ति पामेला करोडो मुनिवरो पण बराबर आ मुक्तागिरि धामनी उपर सिद्धक्षेत्रमां अत्यारे
सिद्धपणे बिराजी रह्या छे; तीर्थयात्रामां एवा मुनिओनुं अने सिद्धभगवंतोनुं स्मरण करीए छीए.
आत्मानी पूर्णानंदसिद्धदशा सादिअनंत ज्यांथी प्रगटी ते सिद्धिधाम छे, अने तेना स्मरण माटे
सिद्धिधामनी यात्रा करे छे. अहो! अहींथी मुनिवरोए क्षपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान लीधुं, अने अहींथी
मुनिओ–तीर्थकरो ऊर्ध्वगमन करीने सिद्धालयमां जईने बिराज्या.....आम धर्मात्मा जीवो आत्मानी
पूर्णदशानुं स्मरण करीने तेनी भावना भावे छे.
शुद्धचैतन्यना आदरमां राग छूटी जाय छे, परंतु ‘राग छोडुं’ एवा विकल्पथी राग छूटतो नथी.
आहा! मुनिदशा शुं चीज छे!! वारंवार निर्विकल्प थईने स्वानुभूतिमां अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करे
छे. स्वानुभूति करतां करतां चैतन्यगोळाने रागथी तद्न जुदो पाडीने केवळज्ञान प्रगट करे छे. एवा ३ाा
करोड मुनिवरो आ मुक्तागिरि क्षेत्रथी मुक्ति पाम्या....ने अत्यारे उपर सिद्धपणे तेओ बिराजी रह्या छे.
पथिक हे कहान गुरुदेव! अमने पण मुक्तिपंथमां दोर्या करो.