आसोः २४८पः १७ः
मुक्तागिरि – सिद्धिधामां पू. श्री कानजीस्वामीनुं प्रवचन
ता. ४ – ४ – प९
आ भरतक्षेत्रमां २००० वर्ष पहेलां कुंदकुंदाचार्यदेव थया. तेओ महान भावलिंगी संत
हता..ने पोन्नुरहीलमां तेओ तप करता हता, ते पोन्नुरनी जात्रा हमणां थोडा दिवस पहेलां करी
आव्या. ते पोन्नुर उपर नानी नानी गूफाओ छे, तेमज चंपाना झाड नीचे आचार्य भगवानना
चरणपादुका छे. तेओ रत्नत्रयने पामेला हता, अने त्यांथी महाविदेहक्षेत्रमां जईने
सीमंधरभगवाननो उपदेश साक्षात् सांभळ्यो हतो; अने पछी भरतक्षेत्रे आवीने समयसारादिमां
परम अध्यात्मशास्त्रोनी रचना करी. ते समयसारादिमां हजारो शास्त्रोनां बीज भर्यां छे. तेमनी पछी
ते समयसारादि उपरथी बीजा अनेक शास्त्रो मुनिवरोए रच्यां छे. तेमां शुद्धात्मानी प्राप्ति केम थाय,
ते बताव्युं छे.
आपणे अत्यारे तत्त्वज्ञानतरंगिणि वंचाय छे; ते ४०० वर्ष पहेलां ज्ञानभूषण स्वामीए रच्युं छे. तेमां
कहे छे के–
रत्नत्रयोपलंभेन विना शुद्धचिदात्मनः।
प्रादुर्भावो न कस्यापि श्रयते हि जिनागमे।।
(अध्याय १२, श्लोक १)
शुद्धचैतन्यतत्त्वनी प्राप्ति एटले के सिद्धपदनी प्राप्ति रत्नत्रय वगर कोई पण जीवने थती नथी. शुद्ध
रत्नत्रय ते मोक्षनुं असाधारण कारण छे एटले के ते एक ज मोक्षनुं कारण छे, बीजुं कोई मोक्षनुं कारण नथी.
जिनागममां रत्नत्रयने ज शुद्धात्मानी प्राप्तिनो उपाय कह्यो छे.
रत्नत्रय एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र, ते मोक्षमार्ग छे; तेना विना कदी मोक्ष एटले के शुद्धात्मानी
प्राप्ति थती नथी. जीवे अनादि काळथी शुभाशुभ रागनो प्रयत्नो कर्यो छे, परंतु शुद्ध रत्नत्रयनी प्राप्तिनो प्रयत्न
खरेखर कदी कर्यो ज नथी.
जुओ, आ मुक्तागिरि साडात्रण करोड मुनिओनी मुक्तिनुं धाम छे, आ मुक्तागिरिमां मुक्तिनो
उपाय बतावाय छे. जे ३ाा करोड मुनिवरो अहींथी मुक्ति पाम्या तेओ कई रीते पाम्या? के पोते
पोताना आत्मामां शुद्धरत्नत्रयनी आराधना करीने ज तेओ मुक्ति पाम्या छे; रागवडे के परनुं कांई
करवानी बुद्धिवडे तेओ मोक्ष पाम्या नथी; परनुं करवानी बुद्धि तेमज राग तेनो त्याग करीने तेओ
मुक्ति पाम्या छे.
आ जगतमां जीव, पुद्गल वगेरे छ तरेहना द्रव्यो छे ते बधाय स्वतंत्र छे, एक बीजाथी
निरपेक्षपणे सौ पोतपोतानी परिणति करे छे. सुद्रष्टितरंगिणिमां छ मुनिनुं द्रष्टांत आप्युं छे. जेम
वनपर्वतनी गूफामां छ मुनिओ रहेता होय, ते छए मुनिओ पोतपोतानी रत्नत्रयआराधनामां वर्तता
थका एकबीजाथी निरपेक्ष