Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८पः ३ः
धन्य ए दशा! धन्य ए जीवन!
जाणे नानकडा सिद्ध!
जुओ भाई, आठ आठ वर्षनां बाळको पण
चैतन्यतत्त्वनी वात समजी शके छे, ने चैतन्यने पोतानुं
ध्येय बनावीने तेमां लीनताथी परमात्मा थई जाय छे.
नानी नानी उमरना सुंदर राजकुमारो भगवाननी
सभामां जाय छे ने भगवाननी वाणीमां
चिदानंदतत्त्वनी वात सांभळतां अंतरमां ऊतरी जाय
छेः अहो! आवुं अमारुं चिदानंदतत्त्व! तेने ज ध्येय
बनावीने हवे तो तेमां ज ठरशुं, हवे अमे आ संसारमां
पाछा नहीं जईए.–आम वैराग्य पामीने माता पासे
आवीने कहे छे केः हे माता! अमने रजा आपो...हवे
अमे मुनि थईने चैतन्यना पूर्णानंदने साधशुं. माता!
आ संसारमां तुं अमारी छेल्ली माता छो, हवे अमे
बीजी माता नहीं करीए....आ संसारथी हवे अमारुं मन
विरक्त थयुं छे. हे माता! हवे तो चैतन्यना आनंदमां
लीन थईने अमे अमारा सिद्धपदने साधशुं, ने आ
संसारमां फरीने नहि आवीए. आ रीते माता पासे
रजा लईने, जेना रोमे रोमे वैराग्यनी छाया छवाई
गई छे एवा ते नानकडा राजकुमार मुनि थाय छे. –
अहा, एनो देदार! –जाणे नानकडा सिद्ध भगवान
होय! धन्य ए दशा! धन्य ए जीवन!
–एवी दशा प्रगट करवा माटे केवुं
भेदज्ञान होवुं जोईए?
–ए वात आचार्यदेवे
समयसारमां समजावी
छे....तेना उपरना
प्रवचननोनो एक हप्तो
आ अंकमां प्रसिद्ध थयो छे.