Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ४ः आत्मधर्मः १९२
बंधनथी छूटकारानो उपाय बतावीने
आचार्यदेव शिष्यनी जिज्ञासा तृप्त करे छे
(श्री समयसार गा. ६९ थी ७२ उपरनां प्रवचनोनुं दोहन)
(वीर सं. २४८प श्रावण वद १३ थी भादरवा सुद ६)
“हे भाई! संतो तने आत्मानुं साचुं
भोजन जमाडे छे, –के जेना स्वादथी तने
आत्माना अतीन्द्रिय–आनंदरसनो अनुभव
थशे. माटे एक वार तेनो रसियो था.....ने
जगतना बीजा रसने छोड!
अहो! जंगलमां रहीने आत्माना
आनंदमां झूलतां झूलतां मुनिवरोए अमृत
रेडयां छे. विकारना वेगे चडेला प्राणीओने
पडकार करीने ज्ञानस्वभाव तरफ पाछा वळ्‌या
छेः अरे जीवो! पाछा वाळो.....पाछा वाळो! ए
विकार तमारुं कार्य नथी. तमारुं कार्य तो ज्ञान
छे...... विकार तरफना वेगे तमारी तृषा नहीं
छीपे...माटे तेनाथी पाछा वळो......पाछा वळो.
ज्ञानमां लीनताथी ज तमारी तृषा शांत थशे,
माटे ज्ञान तरफ आवो.... रे...ज्ञान तरफ आवो!
मंगलस्वरूप भेदज्ञानज्योतिने नमस्कार हो!
१. समयसारना आ कर्ताकर्मअधिकारमां वस्तुस्वरूपनुं रहस्य अने सम्यग्दर्शननी चावी छे; स्व–परनुं
तेमज स्वभाव अने विभावनुं स्पष्टपणे भेदज्ञान आचार्यदेवे आ अधिकारमां कराव्युं छे.
२. आत्मा ज्ञानस्वभावी छे, तेनुं पूर्ण सामर्थ्य खीली जतां ते सर्वज्ञ थाय छे. ते सर्वज्ञ–परमेश्वर
जगतना ज्ञाता छे, पण कर्ता नथी.
३. आ जगतमां अनंता जीव ने अजीव पदार्थो छे, तेओ अनादिअनंत स्वयंसिद्ध सत् छे. ते पदार्थोना
कोई कर्ता नथी. दरेक पदार्थ द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप छे; द्रव्य–गुण त्रिकाळ छे, पर्याय क्षणे क्षणे नवी नवी थाय
छे. जेम त्रिकाळी द्रव्यनो के गुणनो कोई कर्ता नथी तेम तेनी प्रतिक्षणवर्ती पर्यायोनो पण कोई बीजो कर्ता नथी.