Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८प ः पः
४. सर्वज्ञ जगतना पदार्थोने जेम छे तेम जाणनारा छे; ते सर्वज्ञ पण सर्वेना मात्र जाणनारा छे, कोईना
करनार के फेरवनार नथी. जो कोई पोताने पदार्थोनो करनार के फेरवनार माने तो ते त्रिकाळवेत्ता होई शके
नहीं. आ रीते जीवनो ज्ञानस्वभाव ज छे. अने पदार्थो स्वतंत्र छे.
प. ज्यां सुधी जीव पोताना ज्ञानस्वभावने जाणतो नथी अने परनी साथे कर्ताकर्मपणुं माने छे–त्यां
सुधी ते अज्ञानी छे.
६. भेदज्ञानवडे स्व–परने भिन्न भिन्न जाणीने ज्यारे पोताना ज्ञानस्वभावमां ज एकतापणे
निर्मळपर्यायना कर्तारूपे जीव परिणमे छे त्यारे ते ज्ञानी छे.
७. रागादि बर्हिभावो मारुं कार्य ने तेनो हुं कर्ता–एवुं राग साथेनी एकत्वबुद्धिनुं कर्तृत्व ते अज्ञानीनुं
कार्य छे, ने अज्ञानी तेनो कर्ता छे.
८. एटले ते विकारनो कर्ता, ज्ञानस्वभाव पण नथी अने जडकर्म पण नथी; क्षणिक अज्ञानभाव ज तेनो
कर्ता छे. ज्ञानभावे जीव तेनो कर्ता नथी.
९. ज्ञानी के अज्ञानी कोईने पण परनुं कर्तापणुं तो छे ज नहीं; तेमज परद्रव्य तेनुं कर्ता नथी. दरेक
द्रव्यनुं कार्य पोतपोतामां ज होय छे, बीजामां होतुं नथी.
१०. अज्ञानी कर्ता अने देहादिनी क्रिया तेनुं कार्य–एम नथी; तेमज जडकर्म वगेरे कर्ता अने रागादि तेनुं
कार्य–एम पण नथी. आत्माना कार्यनो कर्ता आत्मा ने जडना कार्यनो कर्ता जड.
११. अज्ञानी माने भले के ‘हुं देहादिनी क्रियानो कर्ता छुं, तो पण ते कांई देहादिनी क्रियानो कर्ता थई
शकतो नथी. देहादिनी क्रियाना कर्तापणे जड पुद्गलो ज स्वयं परिणमे छे. अज्ञानी तो ते वखते मात्र
अज्ञानभावनो ज कर्ता थईने परिणमे छे. ते अज्ञान ज संसारनुं मूळ छे.
१२. कर्ता–कर्म संबंधीनुं ते अज्ञान केम टळे, तेनी आ वात छे. भेदज्ञान वडे जीव ज्यारे स्व–परने भिन्न
भिन्न जाणे छे त्यारे, स्वद्रव्यमां एकता करीने ते पोतानी सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्यायना कर्तापणे परिणमे छे
अने तेना अज्ञाननो नाश थाय छे.
१३. ‘मारो आत्मा एक ज्ञायकस्वभाव ज छे’ एम ज्यारे द्रष्टिमां लीधुं त्यारे क्षणिक विकारभावो
पोताना स्वभावपणे नथी भासता, पण स्वभावथी भिन्नपणे ज भासे छे, एटले ते विकारनुं कर्तृत्व पण रहेतुं
नथी; ज्ञायकस्वभावना आश्रये ऊपजती निर्मळदशानो ज कर्ता थतो थको, कर्म साथेना संबंधनो नाश करीने ते
जीव सिद्धपद पामे छे.
ए वात आ कर्ताकर्मअधिकारमां आचार्यदेव समजावे छे.
१४. मंगलाचरणमां सिद्धभगवंतोने नमस्कार करवामां आवे छे.
कर्ताकर्म विभावने मेटी ज्ञानमय होय,
कर्म नाशी शिवमां वसे, नमुं तेह मद खोय.
अनादिना अज्ञानथी थयेल कर्ताकर्मना विभावने दूर करीने जेओ ज्ञानमय थया अने कर्मनो नाश करीने
सिद्धालयमां वस्या, ते सिद्धभगवंतोने हुं मदरहित थईने नमस्कार करुं छुं. आ रीते कर्ताकर्म अधिकारना
मंगलाचरणमां सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे. बहु ज विनयथी, अने परना कर्तृत्वना अभिमानने छोडीने,
सिद्ध भगवंतोने हुं नमस्कार करुं छुं.