Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १९२
१प. भाई! आ मनुष्यदेह कायम नहि रहे, क्षणमां ते वींखाई जशे.....भेदज्ञान करीने आत्मानुं संभाळ,
भाई!–एना विना तने कोई शरण थाय तेम नथी. जे परनुं कर्तृत्व माने छे ते तने कांई शरणरूप नहि थाय;
परथी भिन्न एवुं तारुं चैतन्यतत्त्व ज तने शरणरूप छे, तेने तुं ओळख.
१६. आ संसाररूपी नाटकनी रंगभूमिमां जीव अने अजीव संयोगपणे एकमेक जेवा देखाय छे, अनेक
प्रकारना स्वांगथी जाणे के तेओ एकबीजाना कर्ता–कर्म होय एवा लागे छे,–त्यां अज्ञानीने ते बंने वच्चेनो भेद
देखातो नथी, पण ज्ञानी पोताना भेदज्ञानना बळे ते बंनेने भिन्न भिन्न जाणी ले छे; ने भिन्न भिन्न जाणतां
तेओ जुदां पडी जाय छे.
१७. देवकी माताना छ पुत्रो (त्रण युगल) मुनि थया छे. छए मुनिओ चैतन्यना ज्ञानध्यानमां, मस्त,
जाणे हालताचालता सिद्ध होय....एवा छे; महासुंदर रूप एक सरखुं छे. एक वार बब्बे मुनिओ वाराफरती
देवकीमाताने त्यां आहार माटे पधारे छे. तेमने देखीने देवकीमाताने आश्चर्य थाय छे ने पुत्र जेवो स्नेह
ऊभराय छे. तेने मनमां एम थाय छे के–अरे, आ ते ज बे मुनिओ फरीफरीने त्रीजी वार मारे त्यां केम
पधार्या! अने मने तेमना प्रत्ये आटलो बधो स्नेह कां ऊभराय छे! मारा कृष्ण जेवा छ–छ पुत्रोने जन्म देनारी
महाभाग्यवंत माता आ जगतमां कोण छे!–पछी तो भगवान नेमिनाथना श्रीमुखे ते छए मुनिओनुं वृत्तांत
सांभळे छे के ते ज बे मुनिओ त्रण वखत नहोता आव्या, पण त्रणे वखते जुदा जुदा मुनिओ हता, अने पोते
ज ते छए मुनिवरोनी माता हती!–त्यारे ते हर्षित थाय छे. जुओ, देवकीए छ पुत्रो जुदा हता छतां जुदा न
जाण्या, ने छ पुत्रो पोताना हता छतां पारका लाग्या.
तेम, आ जगतमां छ मुनिओनी जेम छए द्रव्यो भिन्न भिन्न छे, कोईने कोईनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी;
पण अज्ञानी जीव मोहथी स्व–परने एकमेकपणे माने छे, अने पर साथे कर्ताकर्मनी बुद्धिथी ते पोतानी प्रजाने
(–पर्यायने) परनी माने छे, तेथी ते दुःखी थाय छे. भगवाननी वाणीद्वारा स्व–परने भिन्न भिन्न ओळखीने
भेदज्ञान करतां वेंत ज तेने स्वद्रव्यना अनुभवथी अतीन्द्रिय आनंद उल्लसे छे.
१८ ‘सुद्रष्टि तरंगिणि’ मां छ द्रव्योनी भिन्नता विषे छ मुनिओनुं सरस द्रष्टांत आप्युं छेः जेम
एक गुफामां छ मुनिराज बहु काळथी रहे छे, परंतु कोई कोईथी मोहित नथी, उदासीनता सहित एक
क्षेत्रमां रहे छे; तेवी ज रीते छ द्रव्यो एक लोकक्षेत्रमां जाणवा. आ जगतरूपी गुफामां जीवादि छ द्रव्यो
अनादिथी पोतपोताना गुण–पर्याय सहित पोतपोताना स्वभावमां रहेलां छे; एक जग्याए तेओनी
स्थिति छे परंतु कोई एकबीजामां मळी जतां नथी. एवो ज अनादि व्यवहार छे के कोई द्रव्य अन्य
द्रव्यनी साथे मळी जतुं नथी, कोईना गुण अन्यना गुण साथे मळी जता नथी, कोईनी पर्याय अन्यनी
पर्याय साथे मळी जती नथी.–आवी ज उदासीनवृत्ति छे. वस्तुनो आवो निरपेक्ष स्वभाव अहीं छ
वीतरागी मुनिओना द्रष्टांतथी समजाव्यो छे. एक गुफामां छ वीतरागी मुनिओ रहे छे, छए मुनिओ
पोतपोताना स्वरूपसाधनमां ज लीन छे, कोईने कोई उपर मोह नथी; छए वीतरागी मुनिओ
एकबीजाथी निरपेक्षपणे स्वरूपसाधनामां ज लीन छे; तेम आ लोकरूपी गुफामां छए द्रव्यो वीतरागी
मुनिओनी माफक एकबीजाथी निरपेक्षपणे रहेलां छे. कोई द्रव्य अन्य द्रव्यनी अपेक्षा राखतुं नथी; सौ
पोतपोताना गुण–पर्यायमां ज रहेलां छे.
१९. –आवो निरपेक्ष वस्तुस्वभाव होवा छतां अज्ञानी जीव भ्रमणाथी एम माने छे के हुं परनो कर्ता ने
पर मारुं कार्य. पर साथे कर्ताकर्मपणानी वात तो दूर रहो–अहीं तो अंदरना विकारी भावो साथे पण भेदज्ञान
करावीने ते विकारीभावो साथेना कर्ताकर्मापणानी बुद्धि छोडावे छे.