Atmadharma magazine - Ank 194
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Reg. No. B. 4787
“त्रिमूर्तिनो अवतार!”
धवला, जयधवला अने महापुराण ए त्रण महान साहित्यनी रचना, श्री
वीरसेनाचार्य, श्री जिनसेनाचार्य अने श्री गुणभद्राचार्य–ए त्रण महान संतोद्वारा
थई छे.
(१) प्रथम श्री वीरसेनस्वामीए षट्खंडागम उपर ७२,००० श्लोकप्रमाण
धवला टीका रची; अने त्यार पछी तेमणे कषायप्राभृत उपर जयधवला टीका
लखवानो प्रारंभ कर्यो; परंतु हजी तेनी २०,००० श्लोकप्रमाण टीका थई हती त्यां तो
तेमनो स्वर्गवास थयो...ने अधूरी रहेली जयधवला टीकाने पूरी करवानुं कार्य तेमना
सुयोग्य शिष्य श्री जिनसेनाचार्य उपर आव्युं.
(२) श्री जिनसेनाचार्ये ४०,००० श्लोक रचीने (ई. स. ८३८मां) जयधवला
टीका पूर्ण करी; अने महापुराण रचवानो प्रारंभ कर्यो; परंतु वच्चे ज तेमनो
स्वर्गवास थतां महापुराणनी रचना अधूरी रही गई ने ते पूर्ण करवानुं कार्य तेमना
सुशिष्य गुणभद्रस्वामी उपर आव्युं.
(३) जिनसेनस्वामीनी अधूरी रहेली रचना तेमना शिष्य श्री
गुणभद्रस्वामीए (ई. स. ८९७मां) पूरी करी. महापुराणना लगभग २०,०००
श्लोक छे; तेमांथी १०,००० श्लोक जिनसेनस्वामीनी रचना छे; ने बाकीनी
गुणभद्रस्वामीनी रचना छेे.
आ रीते वीरसेन–जिनसेन–गुणभद्र ए त्रण महान आचार्योए एकबीजानी
संधिपूर्वक अविच्छिन्न परंपराथी धवला, जयधवला ने महापुराण एवा त्रण महान
साहित्यनी रचना करी. आ घटना उपरथी जाणे के ए त्रण महान साहित्यनिधिनी
उत्पत्ति करवा माटे ज ए असाधारण त्रिमूर्तिनो अवतार होय!
वंदन हो ए त्रिमूर्तिने...अने तेमना अपार श्रुतने!
महापुराण
श्री जिनसेन अने गुणभद्र जेवा बे महान आचार्योद्वारा रचित “महापुराण”
ए भारतीय कथासाहित्यमां सौथी महान अने महत्वरूप छे. तेमां जैनधर्मना २४
तीर्थंकरो, १२ चक्रवर्तीओ, ९ बळभद्रो, ९ नारायणो अने ९ प्रतिनारायणो–ए प्रमाणे
६३ शलाका पुरुषोनां जीवनचरित्रनुं वर्णन मुख्य छे, ते उपरांत तेमनी साथे संबंध
धरावता बीजा पण अनेक मोक्षगामी जीवोना जीवननुं वर्णन छे. आ महापुराणमां ते
तीर्थंकर वगेरेना फक्त एक ज जीवनकाळनुं वर्णन नथी परंतु तेमना अनेक पूर्व
जन्मोनुं पण विवेचन करवामां आव्युं छे, तेथी तेओनी धार्मिक के आध्यात्मिक उन्नतिनो
मार्ग स्पष्टपणे प्रतिभासित थाय छे. यथार्थमां तो आ जीवनचारित्रोद्वारा धर्मानुरागी
जीवो समक्ष अनेक आत्माओना आध्यात्मिक विकासना विधविध द्रश्यो उपस्थित थाय
छे, जेथी पाठकना हृदयमां धार्मिक श्रद्धा अने आध्यात्मिक आदर्श उपस्थित थाय छे.
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशक : हरिलाल देवचंद शेठ : आनंद प्री. प्रेस–भावनगर