मोक्षमार्गनी सिद्धि माटे मुमुक्षुए शुं करवुं?
प्रश्न:–धर्म शुं छे?–अर्थात् साक्षात् मोक्षमार्ग शुं छे?
उत्तर:–चरितं खलु धम्मो अर्थात् चारित्र ते
खरेखर धर्म छे, ते ज साक्षात् मोक्षमार्ग छे.
प्रश्न:–चारित्र एटले शुं ?
उत्तर:–शुद्ध ज्ञानस्वरूप आत्मामां चरवुं–
प्रवर्तवुं ते चारित्र छे.
प्रश्न:–आवा चारित्र माटे पहेलां शुं होवुं जोईए?
उत्तर:–चारित्र माटे प्रथम तो स्व–परना
यथार्थ स्वरूपनो निश्चय करवो जोईए; केम के जेमां
एकाग्र थवानुं छे ते वस्तुना स्वरूपनो निश्चय कर्या
वगर तेमां स्थिर क्यांथी थाय? माटे प्रथम जेमां स्थिर
थवानुं छे ते वस्तुना स्वरूपनो निश्चय करवो जोईए.
प्रश्न:–वस्तुना स्वरूपनो निश्चय कया प्रकारे करवो?
उत्तर:–वस्तुना स्वरूपनो आ प्रमाणे निश्चय
करवो के–आ जगतमां हुं स्वभावथी ज्ञायक ज छुं; अने
माराथी भिन्न आ जगतना जड–चेतन समस्त पदार्थो
ते मारां ज्ञेयो ज छे. विश्वना पदार्थो साथे मात्र
ज्ञेयज्ञायकसंबंधथी विशेष कंई पण संबंध मारे नथी.
कोई पण पदार्थ मारो नथी, ने हुं कोईनां कार्यनो कर्ता
नथी. दरेक पदार्थ पोताना स्वभावसामर्थ्यथी ज
उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यस्वरूपे परिणमी रह्यो छे, तेनी साथे
मारे कांई ज संबंध नथी.
जे जीव आवो निर्णय करे ते ज पर साथेनो
संबंध तोडीने निजस्वरूपमां उपयोगने जोडे, एटले तेने
ज स्वरूपमां चरणरूप चारित्र थाय. आ रीते चारित्र
माटे पहेलां वस्तुस्वरूपनो निर्णय करवो जोईए.
प्रश्न:–जे जीव वस्तुस्वरूपनो यथार्थ निश्चय नथी करतो
तेने शुं थाय छे?
उत्तर:–जे जीव वस्तुस्वरूपनो निश्चय नथी करतो तेनुं
चित्त ‘वस्तुस्वरूप कई रीते हशे!’ एवा संदेहथी सदाय
डामाडोळ–अस्थिर रह्या करे छे. वळी स्व–परना
भिन्नभिन्न स्वरूपनो तेने निश्चय नहि होवाथी
परद्रव्यने करवानी ईच्छाथी तेनुं चित्त सदाय आकुळ
रह्या करे छे, तेमज परद्रव्यने भोगववानी बुद्धिथी तेमां
राग–द्वेष करीने तेनुं चित्त सदाय कलुषित रह्या करे छे.–
आ रीते, वस्तुस्वरूपना निश्चय वगर जीवनुं चित्त
सदाय डामाडोळ अने कलुषित वर्ततुं होवाथी, तेने
स्वद्रव्यमां स्थिरता
थई शकती नथी. जेनुं चित्त डामाडोळ अने कलुषितपणे
परद्रव्यमां ज भमतुं होय तेने स्वद्रव्यमां प्रवृत्तिरूप
चारित्र कयांथी थाय?–न ज थाय, माटे जेने पदार्थना
स्वरूपनो निश्चय नथी तेने चारित्र होतुं नथी.
प्रश्न:–पदार्थना स्वरूपनो निश्चय करनार जीव
केवो होय छे?
उत्तर:–ते जीव पोताना आत्माने कृतनिश्चय,
निष्क्रिय अने निर्भोग देखे छे. स्व–परना स्वरूप
संबंधी तेने संदेह टळी गयो छे, परद्रव्यनी कोई पण
क्रियाने ते आत्मानी मानतो नथी तेमज पोताना
आत्माने परद्रव्यमां प्रवृत्तिरूप क्रियाथी रहित–निष्क्रिय
देखे छे, अने परद्रव्यना भोगवटा रहित निर्भोग देखे
छे. आवा पोताना स्वरूपने देखतो थको ते जीव, संदेह
अने व्यग्रताथी रहित थयो थको निजस्वरूपमां एकाग्र
थाय छे, निजस्वरूपनी धूननो धूनी थईने तेमां ते ठरे
छे. आ रीते वस्तुस्वरूपनो निश्चय करनारने ज
चारित्र होय छे.
प्रश्न:– मोक्षमार्गने साधनारी मुनिदशा कोने होय छे?
उत्तर:–उपर मुजब वस्तुस्वरूपनो निश्चय
करीने तेमां जे एकाग्र थाय छे तेने ज श्रामण्य एटले
के मुनिपणुं होय छे.
प्रश्न:–श्रामण्यनुं (मुनिपणानुं) बीजुं नाम शुं छे?
उत्तर:–श्रामण्यनुं बीजुं नाम मोक्षमार्ग छे.
ज्यां मोक्षमार्ग छे त्यां ज श्रामण्य छे; जेने मोक्षमार्ग
नथी तेने श्रामण्य पण नथी.
प्रश्न:–श्रामण्य केवुं छे?
उत्तर:–श्रामण्य शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवृत्तिरूप छे.
स्व–परनी भिन्नतानो निश्चय करीने, स्वरूपमां
एकाग्रतावडे शुद्ध आत्मामां प्रवृत्ति करवी ते श्रामण्य
छे; ते ज मोक्षमार्ग छे.
प्रश्न:–आवा मोक्षमार्गने सर्व प्रकारे सिद्ध करवा माटे
मुमुक्षुए शुं करवुं?
उत्तर:–मोक्षमार्गनी सर्व प्रकारे सिद्धि करवा माटे
मुमुक्षुए, भगवान सर्वज्ञदेवे स्वयं जाणीने कहेला
अनेकांतमय शब्दब्रह्ममां (अर्थात् आगमना
अभ्यासमां) निष्णात थवुं, एटले के आगममां जे
प्रमाणे वस्तुस्वरूप कह्युं छे ते प्रमाणे निश्चय करवो..
आवो निश्चय करीने पछी स्वद्रव्यने एकने ज अग्र
करीने एकाग्रपणे तेमां प्रवर्तवुं.–आ मोक्षमार्गनी
सिद्धिनो उपाय छे.(प्रवचनसार गा. २३२ना
प्रवचनमांथी)