सीमंधरादि वीसविहरमान भगवंतोना एक साथे दर्शन थतां घणो आनंद
थयो...विदेहना वीस भगवंतोने भारतमां एक साथे देखीने भक्तोनुं हृदय
प्रसन्नताथी नाची ऊठयुं.–त्यांनुं आ प्रवचन छे,–जेमां सीमंधरादि वीस
भगवंतोने याद करीने गुरुदेव पण पोतानो प्रमोद व्यक्त करे छे.
क्षेत्रमां बिराजमान सीमंधर परमात्मा पासे गया हता, तेमणे आ समयसारशास्त्र
रच्युं छे.
सुबाहु वगेरे वीस तीर्थंकरो अहीं पहेलवहेला ज जोया; वीस तीर्थंकरोनी एक साथे
आवी स्थापना बीजे क्यांय जोई नथी. ( दहींगांव पछी यात्रामां आगळ जतां
कचनेरा गामे धातुना वीस विहरमान भगवंतोनां दर्शन थया हता.) ते वीस तीर्थंकरो
अत्यारे साक्षात्् सर्वज्ञपदे देहसहित समवसरणमां बिराजे छे. “अरे! आ भरतक्षेत्रे
साक्षात् तीर्थंकरनाथनो विरह छे...विदेहमां साक्षात् तीर्थंकर बिराजे छे...”–एम
अंतरमां विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरनुं स्मरण करीने, कुंदकुंदाचार्य तेमनुं ध्यान करता हता;
त्यां सीमंधर तीर्थंकरना श्रीमुखथी
मानवी तो प०० धनुष ऊंचा ने भरतना कुंदकुंदाचार्य तो एक ज धनुष ऊंचा; एटले
चक्रवर्ती आश्चर्यपूर्वक भगवानने पूछे छे के हे नाथ! आ कोण छे? त्यारे भगवाननी
वाणीमां एम आव्युं के: तेओ भरतक्षेत्रमां