Atmadharma magazine - Ank 194
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : १९४
विदेहक्षेत्रमां गयेला कुंदकुंदाचार्यदेव
तेमणे समजावेली भेदज्ञाननी अपूर्व वात
वीस विदेही भगवंतोना धाम
दहींगांवमां पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी.
(वीर सं. २४८प माह सुद दसम)
पू. गुरुदेवनी ‘दक्षिणयात्रा’मां पहेलुं मुख्यस्थान आव्युं दहींगांव;
खरबचडा ने वांकाचूंका रस्ताना प्रवासथी थाकेला यात्रिकोने दहींगांवमां
सीमंधरादि वीसविहरमान भगवंतोना एक साथे दर्शन थतां घणो आनंद
थयो...विदेहना वीस भगवंतोने भारतमां एक साथे देखीने भक्तोनुं हृदय
प्रसन्नताथी नाची ऊठयुं.–त्यांनुं आ प्रवचन छे,–जेमां सीमंधरादि वीस
भगवंतोने याद करीने गुरुदेव पण पोतानो प्रमोद व्यक्त करे छे.
आ समयसार शास्त्र वंचाय छे. आ भरतक्षेत्रमां सं. ४९ लगभगमां
कुंदकुंदाचार्य मुनिराज थया; तेओ महापवित्र ऋद्धिधारी संत हता, ने महाविदेह
क्षेत्रमां बिराजमान सीमंधर परमात्मा पासे गया हता, तेमणे आ समयसारशास्त्र
रच्युं छे.
महाविदेह क्षेत्रमां अत्यारे २० तीर्थंकरो साक्षात् बिराजे छे; अहीं पण भोंयरामां
ते सीमंधरादि वीस तीर्थंकरोनी स्थापना छे. एक साथे सीमंधर, युगमंधर, बाहु,
सुबाहु वगेरे वीस तीर्थंकरो अहीं पहेलवहेला ज जोया; वीस तीर्थंकरोनी एक साथे
आवी स्थापना बीजे क्यांय जोई नथी. ( दहींगांव पछी यात्रामां आगळ जतां
कचनेरा गामे धातुना वीस विहरमान भगवंतोनां दर्शन थया हता.) ते वीस तीर्थंकरो
अत्यारे साक्षात्् सर्वज्ञपदे देहसहित समवसरणमां बिराजे छे. “अरे! आ भरतक्षेत्रे
साक्षात् तीर्थंकरनाथनो विरह छे...विदेहमां साक्षात् तीर्थंकर बिराजे छे...”–एम
अंतरमां विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरनुं स्मरण करीने, कुंदकुंदाचार्य तेमनुं ध्यान करता हता;
त्यां सीमंधर तीर्थंकरना श्रीमुखथी
‘सद्धर्मवृद्धिः अस्तु’ एवा आशीर्वाद दिव्यध्वनिद्वारा
नीकळ्‌या...ने कुंदकुंदाचार्य अहींथी त्यां सीमंधर प्रभुनी धर्मसभामां पधार्यां...विदेहना
मानवी तो प०० धनुष ऊंचा ने भरतना कुंदकुंदाचार्य तो एक ज धनुष ऊंचा; एटले
चक्रवर्ती आश्चर्यपूर्वक भगवानने पूछे छे के हे नाथ! आ कोण छे? त्यारे भगवाननी
वाणीमां एम आव्युं के: तेओ भरतक्षेत्रमां