Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
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वर्ष सत्तरमुं: अंक ३ जो संपादक: रामजी माणेकचंद दोशी पोष: २४८६
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उ.....प.....दे.....श.....अ.....मृ.....त
(१) प्रथम जीवने एम धगश जागवी जोईए ने आत्मानी धून
लागवी जोईए के मारा आत्मानुं सम्यग्दर्शन कर्या वगर आ
जन्ममरणथी छूटकारो थाय तेम नथी. माटे सर्व उद्यमथी सम्यग्दर्शन
करवा जेवुं छे.
(२) जेने अंदरमां आत्माना सम्यग्दर्शननी खरी झंखना जागे ते
अंतरमां तेनो मार्ग शोधे. ते जीव बहारना संयोगमां के विकल्पोमां
सुखबुद्धि करे नहि, एटले तेमां आत्माने बांधी द्ये नहि; पण तेनाथी
छूटो ने छूटो रहीने ज्ञानानंदस्वभाव तरफ वारंवार वळ्‌या करे.
(३) रागथी पार चैतन्यस्वभावनो अनुभव कर्ये ज मारो
भवभ्रमणथी छूटकारो थाय तेम छे–एम लक्षमां लईने, कोई पण रीते
सम्यग्दर्शनवडे शुद्ध आत्मानो अनुभव करवानी जेने धगश अने
झंखना जागी छे एवो जिज्ञासु शिष्य विनयपूर्वक श्री गुरुने पूछे छे के
प्रभो! आत्मा अने रागादिने भिन्न कई रीते अनुभववा?
(४) श्री गुरु अनुग्रहपूर्वक तेने समजावे छे के हे भव्य!
शुभाशुभवृत्तिओ तो अपवित्र छे ने चैतन्यस्वभाव पवित्र छे;
शुभाशुभवृत्तिओनुं वेदन आकुळतामय छे–दुःखरूप छे, ने
चैतन्यस्वभावनुं वेदन तो शांत–आनंदमय छे,–आम स्वादभेदथी बंनेने
जुदा जाणतां ज तारुं ज्ञान रागथी छूटीने अंर्तस्वभावमां वळी जशे,
ने रागथी भिन्न चैतन्यस्वभावनो अपूर्व अनुभव तने थशे.
(प) जुओ, आ भेदज्ञान! .......जेनाथी संसार अटके ने मुक्ति
थाय. एक सेकंडनुं भेदज्ञान अनंत संसारनो नाश करीने अल्पकाळमां
मुक्ति आपे छे. अहा, भेदज्ञाननो महिमा जीवने अनादिथी भास्यो
नथी, ने बहारनी क्रियानो ने बहारना भावोनो महिमा मान्यो छे.
जेनो महिमा माने तेनाथी पाछो केम वळे? अने चैतन्यनो महिमा
जाण्या वगर तेमां अंतर्मुख केम थाय?
(६) अरे जीव! एक वार आवो निर्णय तो कर के मारा आत्मामां
अंतर्मुख थवुं ते ज मने सुखनुं कारण छे ने बहिर्मुखवृत्ति ते मने दुःखनुं
कारण छे. अहा! हुं तो ज्ञायक छुं, मारो आत्मा ज मारा सुखनुं कारण
छे–एम निर्णय करीने अंतर्मुख थवुं ते ज बंधनथी छूटकारानो उपाय छे.