Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ४: आत्मधर्म: १९प
(७) धीरो थईने अंतर्मुख लक्ष कर तो ख्यालमां आवे के आ
रागादिनी लागणीओमां शांति नथी पण आकुळता छे, ने
चैतन्यस्वभाव शांत–अनाकुळ स्वादथी भरेलो छे केमके तेनी निकटतामां
पण शांति भासे छे, अने ते स्वभावमां वळतां शांत–अनाकुळ स्वादनुं
वेदन थाय छे.–आम पोताने स्वादना भेदथी आत्मा अने रागनी
भिन्नतानो निर्णय थाय छे.
(८) आत्मा अने राग ए बंनेना स्वादने पोताना वेदनथी ज्यां
भिन्न जाण्यो त्यां रागना स्वादमां ज्ञान रोकातुं नथी पण अंतर्मुख
थईने चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद ल्ये छे. आ रीते भेदज्ञान
थतां ज आत्मा संसारथी निवृत्त थाय छे ने मोक्ष तरफ परिणमतो जाय
छे.
(९) सम्यग्ज्ञान वगर बीजुं बधुं जीव अनंतवार करी चूक््यो, पण
मुक्तिनो मार्ग तेने हाथ न आव्यो....केम के मुक्तिनो मार्ग रागमां
नथी.
(१०) आचार्यभगवान कहे छे के प्रभु! तारी मुक्तिनो मार्ग तारा
आत्मामांथी शरू थाय छे, बहारथी तारी मुक्तिनो मार्ग मळे तेम नथी;
माटे अंर्तस्वभावने लक्षमां लईने तेनी सन्मुख था. मुक्तिनो मार्ग
अंतर्मुख छे.
शिखामण
जेम माता बाळकने शिखामण आपे त्यारे, कोईक वार एम कहे के
‘बेटा! तुं तो भारे डाह्यो.......तने आ शोभे!!’ अने क््यारेक एम पण कहे के
‘तुं मूरख छो.........गांडो छो!’ आम क््यारेक मृदुताभरेला शब्दोथी शिखामण
आपे क््यारेक कडक शब्दोमां ठपको आपे, परंतु बंने वखते माताना हृदयमां
पुत्रना हितनो ज अभिप्राय छे एटले तेनी शिखामणमां कोमळता ज भरेली
छे: तेम धर्मात्मा संतो बाळक जेवा अबुध शिष्योने समजाववा माटे उपदेशमां
क््यारेक मृदुताथी एम कहे के हे भाई! तारो आत्मा सिद्ध जेवो छे तेने तुं
जाण!’ अने क््यारेक कडक शब्दोमां कहे के ‘अरे मूर्ख! पुरुषार्थहीन नामर्द!
तारा आत्माने हवे तो ओळख! आ मूढता तारे क््यांसुधी राखवी छे? हवे तो
ते छोड!’ आ रीते, कोईवार मुदृ संबोधनथी अने कोईवार कडक संबोधनथी
उपदेश आपे, –परंतु बंने प्रकारना उपदेश वखते तेमना हृदयमां शिष्यना
हितनो ज अभिप्राय छे एटले तेमना हृदयमां कोमळता ज छे..........वात्सल्य
ज छे.
समयसार कळश २३मां आचार्यदेव कोमळताथी संबोधन करीने
शिष्यने उपदेश आपे छे. शुं उपदेश आपे छे–ते जाणवा माटे आवता अंकमां
प्रसिद्ध थनारुं पू. गुरुदेवनुं प्रवचन वांचो.