Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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पोष: २४८६ : प :
छ महिनानो कोर्स
आत्मप्राप्तिना अभ्यासनो कोर्स केटलो?–वधुमां वधु छ
महिना! जेम मेट्रीकना अभ्यासनो कोर्स १०–११ वर्षनो होय
छे, बी. ए. ना अभ्यासनो कोर्स ४ वर्षनो होय छे, तेम अहीं
धर्मना अभ्यासमां बी. ए. नो एटले के ब्रह्मस्वरूप आत्माना
अनुभवनो कोर्स केटलो? –आचार्यदेव कहे छे के वधुमां वधु छ
महिना! छ महिना अभ्यास करवाथी तने ब्रह्मस्वरूप
आत्मानो अनुभव जरूर थशे..पण अभ्यास माटेनी एक
शरत! कई शरत?...के बीजो नकामो कोलाहल छोडीने
अभ्यास करवो..
कई रीते अभ्यास करवो ते आचार्यदेव शीखवाडे छे:
(समयसार कलश ३४ उपरनुं प्रवचन)
विरम! किमपरेणाकार्य कोलाहलेन
स्वयमपि निभृतः सन् पश्य षण्मासमेकम्।
हृदयसरिस पुसं पद्गलाद्भिन्नधाम्नो
ननु किमनुपलब्धिर्भाति किं चोपलब्धिः।।३४।।
आत्मानो अनुभव करवा माटे जेने लगनी लागी छे–एवा शिष्यने संबोधीने आचार्यदेव कहे
छे के हे भव्य! विरम....जगतना बीजा नकामा कोलाहलथी नुं विरक्त था....बीजा नकामा कोलाहलथी
तने कांई लाभ नथी माटे एनाथी तुं विरक्त था...बाह्य कोलाहलने एककोर राखीने अंतरमां चैतन्यने
देखवानो अभ्यास कर. समस्त परभावोना कोलाहलथी रहित एवा चैतन्यस्वरूपने देखवा माटे
निभृत था....निभृत थईने (एटले शांत थईने, निश्चळ थईने, एकाग्र थईने, विश्वासु थईने, स्थिर
थईने, गुप्त रीते, चुपचाप, विनीत थईने, केळवायेल थईने, द्रढ थईने) अंतरमां चैतन्यने देखवानो
छ महिना सुधी आ रीते अभ्यास कर....एक वार छ महिना सुधी आवो अभ्यास करीने तुं खातरी
करी जो....के आम करवाथी तारा हृदयसरोवरमां पुद्गलथी भिन्न एवा चैतन्यप्रकाशनी प्राप्ति थाय छे
के नहीं? छ महिनामां तो जरूर प्राप्ति थशे.
हे भाई! तारी बुद्धिथी देह अने रागादिने पोताना