Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 25

background image
आत्मधमर्
____________________________________________________________________________
वर्ष सत्तरमुं: अंक ४ जो संपादक: रामजी माणेकचंद दोशी मागशर : २४८६
बेहद स्वभाव
आत्मानो ज्ञानस्वभाव, आत्मानो
शांतिस्वभाव, आत्मानो धैर्य स्वभाव बेहद
छे...एवा आत्माने साधनारा आत्मार्थीने
पण पुरुषार्थमां बेहदता, धैर्य वगेरेमां
बेहदता होय छे. ते आत्मार्थीने एम न थई
जाय के आत्माने साधवा माटे में घणुं कर्युं, हवे
हुं थाकी गयो!’–तेने तो एम ज होय के
कयांक हद बांध्या वगर–कयांक–अटकया वगर
मारे आत्माने साधवो ज छे...न सधाय त्यां
सुधी थाकवानुं नथी पण उत्साह वधारतो ज
जवानो छे.
ए ज रीते अनेकविध प्रतिकूळता
जगतमां आवे तो तेनाथी थाकीने आत्मार्थी
जीव पोताना पंथमां जराय शिथिलता न
आववा द्ये–पण उग्रता ज करतो जाय...तेने
एम न थाय के आत्माने साधवा माटे में
घणुं–घणुं सहन कर्युं–हवे माराथी सहन नथी
थतुं.–एटले के सहनशीलतानी ते हद न
बांधी दे, केमके बेहद स्वभावने साधवा माटे
सहनशीलतानुं धैर्य पण बेहद होय छे.
(एक चर्चा उपरथी)