Atmadharma magazine - Ank 198
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र: २४८६ : १७:
नथी,–एम निर्णय करीने ज्ञानस्वभावनी सन्मुख जे जीव थाय छे ते ज आत्मशांतिने पामे छे.
१२. चैतन्यनुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते समज्या विना अज्ञानने लीधे जीव चारे गतिमां
अनंत दुःख पाम्यो....ते दुःखनो जेने त्रास लाग्यो छे, चैतन्यतत्त्व सिवाय जगतना बीजा कोई
पदार्थमां जेने सुख भासतुं नथी, ते जीव चैतन्यस्वभावनो निर्णय करीने ज्ञानने स्वसन्मुख करे छे,
वच्चे आवता विकल्पोने ज्ञानथी भिन्न जाणीने ओळंगी जाय छे. आ रीते विकल्पथी जुदो थईने
ज्ञानस्वभावनी निर्विकल्प प्रतीत करे छे ते “समयसार” छे, ते ज सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.
आवी प्रतीत करवी ते चार गतिना अनंत दुःखथी छूटकारानो उपाय छे.
१३. चैतन्यतत्त्व विकल्पमांय नथी आवतुं, तो वाणीमां केम आवे?–ए तो ज्ञानना
स्वसंवेदनथी अनुभवगम्य छे. जेणे अंतर्मुख थईने स्वसंवेदनथी आत्मानो परम आनंद अनुभव्यो
छे एवा धर्मात्मा पण वाणीथी तेनुं वर्णन करी शकता नथी; वाणीमां मात्र तेनी झांई आवे, पण ते
आनंद तो वाणी अने विकल्प बंनेथी पार छे.
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठुं ज्ञानमां,
कही शक््या नहीं ते पण श्री भगवान जो;
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे?
अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो.....
१४. विकल्प अने वाणी बंने चिदानंदतत्त्वथी बाह्य छे. जेने चिदानंदतत्त्वनुं लक्ष होय तेने
विकल्पोमां दुःख अने आकुळता लागे छे, एटले तेमां ते अटकतो नथी पण तेनाथी दूर थईने–जुदो
पडीने चैतन्यमां प्रवेश करे छे.
१प. वनजंगलमां वसता ने आत्माना आनंदना स्वादमां झूलता वीतरागी दिगंबर संत
पोताना स्वानुभवने प्रसिद्ध करे छे के अहो! चैतन्यनी सन्मुखताथी अनुभवातुं आ अतीन्द्रियसुख
कोई विकल्पमां न हतुं, कोई बाह्य पदार्थोमां आ सुखनी गंध पण न हती. अनंतकाळना शुभाशुभ
विकल्पोमां कदी आवुं सुख अनुभवायुं न हतुं. चैतन्यनुं जेने लक्ष पण नथी तेने सुख शुं अने दुःख शुं
तेनी पण खबर नथी, तो पछी दुःख टाळवानो अने सुख पामवानो साचो उपाय तो तेने क््यांथी
होय?
१६. अरे जीव! आवो अवतार पामीने जो भवभ्रमणना दुःखथी छूटवानी कळा तेने न आवडी
तो तें आ अवतार पामीने शुं कर्युं? सुखनो उपाय एटले के भेदज्ञाननी कळा जाण्या वगर बीजुं जे
कांई करे ते बधुं रणमां पोकनी जेम फोगट छे. जे भेदज्ञान करे तेने अंतरमांथी भवअंतना भणकार
आवी जाय...सिद्धपदना सन्देश आवी जाय...के हवे भवनो नाश करीने सिद्धपद अल्पकाळमां पामशुं.
जे जीव आत्मानो खरो जिज्ञासु थईने तेना अनुभवनो प्रयत्न करवा मथे छे...तेने शुं
थाय छे?–ते संबंधी सुंदर विवेचन जाणवा माटे आवता अंकमां आ लेखनो बाकीनो भाग
वांचो.