: १६: आत्मधर्म: १९८
जीव अटके तो तेने पण कांई शुद्ध आत्मानो अनुभव थतो नथी. बंने प्रकारना विकल्पोथी जुदो
पडीने, ज्ञानने ज्यारे अंतर्मुख करे त्यारे ज शुद्धात्मानो साक्षात्कार थाय छे.
३. जुओ, आमां शुं कह्युं? आचार्यदेवे आमां घणुं सरस रहस्य भर्युं छे. स्वभावनुं अवलंबन
लईने आत्मानी शुद्धतानो अनुभव करे त्यारे साधकपणुं अने कृतकृत्यता थाय छे. ज्यां सुधी आवुं
स्वभावनुं अवलंबन न ल्ये, ने व्यवहारनुं के विकल्पोनुं अवलंबन लईने अटके त्यां सुधी जीवने
सम्यक्त्वनी प्राप्ति थती नथी.
४. निश्चयमां आरूढ न थयो अने व्यवहाररूप विकल्पो करवामां अटक्यो,–तो ‘तेथी शुं?’–
आम कहीने आचार्यदेव ते व्यवहार–विकल्पोने मोक्ष मार्गमांथी बहार काढी नांखे छे. भाई, ए
विकल्पोना अवलंबनमां क््यांय मोक्षमार्ग नथी; माटे तेनुं अवलंबन छोड, तेनाथी जुदो था, ने
ज्ञानस्वभावमां तारा उपयोगने जोड. अंतर्मुख थईने अतीन्द्रिय आनंदरसना घूटडां पी.
प. देहमां रहेलो दरेक आत्मा भिन्नभिन्न, पोताना शांति स्वभावथी भरेलो छे; ते अज्ञानथी
पोतानी शांति बहारमां मानीने परनो कर्ता थाय छे; बहारमां जे शांति शोधे छे ते पोते ज शांतिथी
भरेलो छे; पोतामां ज पोतानी शांति छे, ते शांति केम शोधवी तेनी आ वात छे.
६. अंतर्मुख थईने शोधतां शांति मळे छे, ए सिवाय बहारमां तो शांति नथी, ने अंतरना
विकल्पोमां पण शांति नथी. ‘हुं बंधायेलो छुं’ एवा विकल्पना शांति नथी; ‘हुं अबंध छुं’ एवी
विकल्पमांय शांति नथी. अबंधपणाना विचार कर्या करवाथी शांति न मळे पण अबंधभावे
परिणमवाथी शांति मळे छे.
७. आवी शांति कोण शोधे? चारे गतिना जन्ममरणथी जे थाक््यो होय, चारे गतिना फेरा जेने
टाळवा होय, जे आत्मानो शोधक होय, ते जीव अंतर्मुख थईने शांतिने शोधे. संसारमां जेने मजा
लागती होय, ने दुःख ज न भासतुं होय, ते तेनाथी छूटवानो उपाय केम करे?
८. भाई, बहारमां वलण जाय ते ज दुःख छे, पछी अशुभवृत्ति हो के शुभवृत्ति हो, बंनेमां
दुःख ज छे. चिदानंदतत्त्व निर्विकल्प छे तेनी प्राप्ति विकल्पवडे केम थाय? विकल्पवडे चैतन्यतत्त्वने
स्पर्शातुं नथी. चैतन्यसत्ताने विकल्पनुं शरण नथी. ज्ञानी विकल्पनुं शरणुं लेता नथी.
९. जे जीव विकल्पनुं शरण माने छे ते जीव ते विकल्पनो ज कर्ता थईने रोकाई जाय छे, एटले
निर्विकल्प चैतन्यनी शांतिनुं तेने वेदन थतुं नथी. विकल्पनुं शरणुं माने छे ते विकल्पथी आघो खसतो
नथी, विकल्पने ओळंगीने स्वभावमां आवतो नथी; विकल्पमां ज तेने शांति लागे छे एटले विकल्पना
वेदनमां ज तन्मय थईने तेना कर्तृत्वमां रोकाय छे, एटले चैतन्य घन निर्विकल्प आत्मानुं सम्यग्दर्शन
तेने थतुं नथी.
१०. “हुं ज्ञानस्वभाव ज छुं” एम पोताना ज्ञानमां द्रढपणे निर्णय करे, अने अंतरना सूक्ष्म
विकल्पमां पण अशांति भासे एटले ते विकल्पने पोताना ज्ञानथी भिन्न जाणे, ते जीव विकल्पने
ओळंगीने चैतन्यस्वभावमां प्रवेशे छे, ने तेने भगवान आत्मानुं सम्यक्दर्शन थाय छे, तेनुं नाम
आत्मानी प्रसिद्धि छे, ते ज प्रथम धर्म छे, ते ज मोक्षनुं द्वार छे.
११. जेम विकल्पमां शांति मानीने तेना कर्तृत्वमां अटकनार तेनाथी आघो खसीने
आत्मशांतिने पामतो नथी, तेम जे जीव परमां शांति माने छे ने परनुं कर्तृत्व माने छे ते जीव परथी
परांग्मुख थतो नथी ने आत्मशांति पामतो नथी. चैतन्यस्वभावी आत्मा परथी भिन्न अने विकल्पथी
पण भिन्न छे एटले तेने परनुं के विकल्पनुं कर्तृत्व