वैशाख: २४८६ : १७ :
ध्यानमां ज प्रगटे छे. ने त्यारपछी मुनिदशा तो घणी अलौकिक छे. ज्ञानस्वरूपी चैतन्यबिंब आत्मानी
जेने प्रीति लागी तेने तीव्र विषय–कषाय–हिंसा–शिकार–मांसादि भक्षण–दारू–चोरी वगेरेनो तो भाव
होय नहीं, परंतु जे शुभराग होय तेनो पण प्रेम तेने होतो नथी. बीजा राग तो दूर रहो, पण ‘मारो
आत्मा शुद्ध चिदानंद छे’ एवा विकल्परूप जे राग छे तेनो प्रेम करीने तेना पक्षमां–तेना कर्तृत्वमां जे
अटके छे तेने पण सम्यग्दर्शन थतुं नथी. सर्वविकल्पोथी पार चिदानंदतत्त्व छे, तेनी साक्षात्
अनुभूतिथी ज सम्यग्दर्शन प्रगटे छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के–
अलमलमति जल्पैर्दु विकल्पैरनल्पै
रयमिह परमार्थर्श्चत्यतां नित्यमेक।
स्वरसविसरपूर्ण ज्ञानविस्फूर्तिमात्रात्–
न खलु समयसारदुत्तरं किंचिदस्ति।।२४४।।
बहु कथनथी ने बहु विकल्पोथी बस थाओ, शब्द अने विकल्पथी पार थईने परमार्थरूप
आत्मानो अनुभव करो. अहा, आ परमार्थरूप आत्मा स्वानुभवमां पोताना निजरसना फेलावाथी
पूर्ण एवा ज्ञानपणे स्फूरायमान थाय छे, आवा शुद्धात्माथी ऊंचुं बीजुं कांई नथी, माटे तेनो ज
अनुभव करो.
जेम लग्न टाणे मांडवे नोतरतां वहालाने पत्र लखे के अत्यारसुधी कांई दोष थयो होय ने माठुं
लाग्युं होय तो भूली जाजो, ने शुभ प्रसंगे अमारा मंडपमां पधारीने मंडपनी शोभा वधारजो....तेम
अहीं साधक धर्मात्माने पोताना स्वरूपनी लग्नी लागी छे. ते स्वरूपलगनीना मंडपमां सिद्धभगवंतोने
आमंत्रे छे के हे सिद्धभगवंतो! मारी मुक्तिनो मंगल प्रसंग छे...आ मंगलप्रसंगे मारा आंगणे.....
मारा चैतन्यमंडपमां पधारो.....आपना पधारवाथी अमारा मंडपनी शोभा वधशे. अत्यार सुधी
भूलथी में विभावनो आदर कर्यो ने तमारो आदर छोडयो, मारो ते अपराध छोडीने हवे हुं विभावनो
आदर छोडुं छुं ने स्वभावनो ज आदर करुं छुं, माटे हे सिद्धभगवंतो! मारा आंगणे पधारो....मारा
शुद्धस्वरूपनी लगनी लगाडीने हुं आपने मारा आंगणे पधरावुं छुं....आ रीते साधक जीव पोताना
शुद्धस्वभावनो आदर करीने तेना सेवनथी सिद्धपदने साधे छे. आ सिद्धपदनो उपाय छे. तेथी आचार्य
भगवान कहे छे के–
अरे जीव! अनंतकाळथी तें रागनी सेवा करी....हवे बस कर....बस कर....ए रागनी सेवा
छोड ने चैतन्यनी सेवा कर....चैतन्यस्वभावमां एकता करीने तेनी सेवा करतां अतीन्द्रिय
आनंदनो अनुभव थशे....ने तारा आंगणे सिद्धभगवान पधारशे,–एटले के तुं पोते सिद्ध
परमात्मा बनी जशे.
हवे प्रसिद्ध थाय छे–
पांच भाषामां अभिनंदन–पत्रो
तामील, संस्कृत, ईंग्लीश, गुजराती अने
हिन्दी दक्षिणतीर्थयात्रा दरमियान पू. गुरुदेवने
उपरोक्त पांच भाषामां मळेला अभिनंदन–
पत्रोनो नमुनो हवे पछीना पानांओमां आप
जोई शकशो.