Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म: १९९
साधकजीव पोताना आंगणे
सिद्धभगवानने पधरावे छे
(फत्तेपुरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन: वैशाख सुद बीज)
साधक जीवने पोताना स्वरूपनी लगनी
लागी छे, ते स्वरूपलगनीना मंडपमां
सिद्धभगवंतोने आमंत्रे छे के हे सिद्धभगवंतो!
मारी मुक्तिना मंगल प्रसंगे मारा आंगणे मारा
चैतन्यमंडपमां पधारो....आपना पधारवाथी मारा
मंडपनी (–मारा श्रद्धा–ज्ञाननी) शोभा वधशे.
सम्यग्दर्शन पामवा माटेनी शी रीते छे ने सम्यग्दर्शननी शी स्थिति छे ते वात जीवे प्रीतिथी
कदी सांभळी नथी. ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छे तेने श्रद्धा–ज्ञानमां लीधा वगर बीजा कोई उपायथी
सम्यग्दर्शन थतुं नथी. अनादि अनंतकाळनो आत्मा, तेनुं वास्तविक स्वरूप, तेनी विकृत विभावदशा,
तेनी साधकदशा, तेनी स्वभावदशा, तेनुं परथी भिन्नपणुं–ए बधी वात आचार्यदेवे श्री समयसारमां
बतावी दीधी छे. जेम राजा–महाराजानुं आखुं जीवन अल्पकाळना नाटकमां बतावी दे छे, तेम
आचार्यदेवे आ समयसाररूपी नाटकमां आखा आत्मानुं जीवन (अज्ञानदशा, साधकदशा ने
सिद्धदशामां रहेला आत्मानुं स्वरूप) बतावी दीधुं छे.
आत्मा परथी भिन्न छे, एटले परनी क्रियामां आत्मानी क्रिया नथी; आत्मानी क्रिया आत्मामां
छे. आत्मामां जे रागादि विभाव छे ते विकार क्रिया छे, ते क्रियाने अज्ञानी करे छे, ने ते क्रिया संसारनुं
कारण छे. ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं भान करीने तेमां लीनतारूप वीतरागीक्रिया ते स्वभावक्रिया छे, ते
धर्मक्रिया छे, धर्मीजीव ते क्रियाने करे छे.
व्यवहारथी हुं बंधायेलो छुं ने निश्चयथी हुं बंधायेलो नथी–एवा बे नय संबंधी पक्षपातना
विकल्पो करवामां जे जीव अटक्यो छे ते जीव पण विभावक्रियामां अटकेलो छे, तो बीजा बाह्य
विकल्पोनी शी वात? भगवान तारा चिदानंद स्वभावना अवलंबन वगर ते चारे गतिमां घोर दुःखो
भोगव्या....अज्ञानभावथी तें जे अनंतदुःख भोगव्युं ते वाणीथी वर्णवी शकाय तेवुं नथी; ए दुःखो तो
तें भोगव्या ने केवळीभगवाने जाण्या. माटे रागनो पक्ष छोडीने चिदानंद स्वभावनुं अवलंबन कर–ते
तारी फत्तेहनो रस्तो छे. जुओ, आ फत्तेपुरमां फत्तेह थवानो उपाय बताव्यो.
आत्मा समजी शके एवी आ वात छे. अमने न समजाय, अमारी शक्ति नथी–एम न मानशो.
दरेक आत्मा केवळज्ञाननी ताकात पोतामां संघरीने बेठो छे. पूर्णज्ञान ने आनंदनो सागर आत्मामां
भरेलो छे–तेमां अंतर्मुख थईने अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग आत्मध्यान वडे ज पमाय छे, राग वडे पमातो नथी. पहेलांमां पहेलुं सम्यग्दर्शन पण
रागना अवलंबन वगर शुद्ध आत्माना निर्विकल्प–