Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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ता. १४–३–६९ ना रोज वांदेवासमां सन्तपुरुष श्री कानजीस्वामीना पदार्पण
प्रसंगे दक्षिण भारतना जैन समाज तरफथी समर्पित
स्वागत–संबोधन
(सामे पाने अंग्रजीमां छपायेल स्वागत–पत्रिकानुं गुजराती भाषांतर)
आपनो जन्म उत्तर भारतमां एक दूर प्रदेशमां थयो हतो. अने आपे दक्षिण
भारतमां अमारा वच्चे पधारीने अमने उपकृत कर्या छे. जैन सिद्धांतोना पवित्र
शास्त्रोना ज्ञानमां आप ऊंडा उतरेला छो. दिगम्बर धर्म ज एकलो आत्मानी मुक्तिनो
मार्ग छे–एवुं सत्यज्ञान आपने प्राप्त थयुं छे. आप आपना आत्मामांथी प्रगट थतां
प्रकाशने अम सौ जैनो प्रत्ये फेलावो छो. आ रीते आप, मानवोनी हृदयभूमिमां
धर्मनां बीज रोपी रह्या छो, निःसंदेहपणे आप स्वयं परमात्माना प्रतिनिधि छो.
हे जैन सिद्धांतना दिव्य दूत!
पवित्र स्वरूप एवा आपे अने आपना शिष्योए धर्मना प्रचारार्थे निज जीवन
समर्पित कर्युं छे अने जनताना हृदयने विशुद्ध बनाववाना हेतुए आप आपनुं जीवन
वीतवी रह्या छो. जेवी रीते प्रातःकाळनो सूर्य पृथ्वीतळना अंधकारने दूर करी दे छे तेवी
रीते आप अमारा समाजना अज्ञानरूपी अंधकारनो नाश करी रह्या छो.
हे दिगम्बरोना दिव्य तेज!
जैन धर्मना प्रचारना हेतुए आपे करेलां पुष्कळ उदारताभर्या कार्यो अमने
आभार अने आश्चर्यथी तरबोळ करी दे छे.
हे मुक्तिदूत!
अमारा मध्यमां आपनुं भावभीनुं स्वागत करतां अमने अत्यानंद थाय छे. हे
महान पवित्र संत! एक वार फरीने पण अमे आपनुं हार्दिक स्वागत करीए छीए
अने आप आपना–धर्मपिता तरीकेना अने कृपापूर्ण–आशीर्वाद आपो एवी विनंति
करीए छीए.