श्री वितरागाय नमः
परमश्रध्धेय, परमात्मतत्त्ववेत्ता, भारतनी भव्यविभूति
आध्यात्मिकसंत आत्मार्थी नरपुंगव
श्रीमत् माननीय पूज्य कानजी स्वामी
ना पुनित करकमलोमां सादरसमर्पित
अभिनंदन पत्र
परमश्रध्धेय,
अमारा परम सौभाग्य अने गौरवनी वात छे के घणा लांबा
समयथी अमो आपना आगमननी अने अध्यात्ममयी अमृतवाणीने
सूणवानी चातकवत् राह जोई रह्या हता ते पुण्यप्रसंगरूप कल्पवृक्ष आजे
अमारा आंगणे फळ्युंं छे. अमारा मनना मनोरथ सफळ बन्या छे. आज
अमो फत्तेपुरवासी तथा अमारूं गुजरात धन्य धन्य बन्युं छे. आजे
अमारा हृदयमां आनंदसागर उछळी रह्यो छे. तेथी अमे सौ भक्तिभावथी
आपना प्रति श्रद्धापुष्प समर्पित करीए छीए.
परमात्मतत्त्ववेत्ता,
ज्यां जुओ त्यां विषयकषायनां वादळ छवाई रह्या छे. चारेकोर
रागद्वेषनी एकांते रमझट रमाई रही छे. परद्रव्यनी कर्ताबुद्धिना
कावादावानी कुकळाओ खदबदाट करी रही छे. एवा ए कपराकाळमां आपे
आपनी अध्यात्म, चमत्कारी, वीतरागी विज्ञाननी दिव्य अमृतमयी
उपदेशधारा वडे भयंकर मिथ्यात्वना पंजामांथी घणा जीवोने बचावी लीधा
छे. अने हजारो जीवोने आपे भेदविज्ञाननी संजीवनी मंत्रमोहिनी द्वारा
परमतत्त्वनी ओळख करावी निजस्वरूपने निहाळता करी भवभयमांथी
अने संसारना अति दुःखद त्रासमांथी उगारी लीधा छे.
आध्यात्मिक संत,
“वर्तमानकाळमां आध्यात्म तत्त्व तो आत्मा छे,”
दुःखमय संसारनी स्थितिनुं अवलोकन करी आपे छ द्रव्य,
साततत्त्व, नवपदार्थ, द्रव्य–गुण–पर्याय,, उत्पाद–व्यय–धै्राव्य, निश्चय–
व्यवहार, उपादान निमित्त आदिनुं गूढ अध्ययन अने चिंतन करी
जगतमां आत्मतत्त्वनी मुख्यता करी अध्यात्मना धोध वहेवडाव्या छे.