
आ भारतवर्षमां वीतराग विज्ञानस्वरूप सुरत्नत्रयनी साधनावंत अनेक ज्ञानी
दिगंबर मुनिवरो द्वारा रचित समयसारादि ग्रंथोनुं अध्ययन करी अंर्तद्रष्टि प्राप्त करी आपे
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्य अने अमृतचंद्राचार्य अने बीजा आचार्योनुं हृदय पारखी लीधुं अने
जिनागमोना रहस्योने जाणी जैन धर्मना शासनने शोभाव्युं.
भारतनी भव्य विभूति
मळ्यो हतो अने तेथी अनेक भव्यजीवो बूझया हता. तेम आपना प्रतापथी छेल्ला वीस
वरसथी सौराष्ट्रमां करेल विहारथी अने आपना संघसहित २०१३मां करेल शाश्वत तीर्थधाम
श्रीसम्मेदशिखरजी आदि तीर्थधामोनी मंगलयात्राना विहारथी अने २०१पनी सालमां श्री
बाहुबलीजी आदि तीर्थधामोनी मंगलयात्राना विहारथी अने स्थळे स्थळे थता अपूर्व दिव्य
उपदेशथी आखुं भारत डोली ऊठ्युं. हजारो भव्यजनो आपनी अध्यात्मबंसरीमां मस्त
बन्या, अज्ञान अने एकांत भागवा लाग्युं, समकितसूरजनो उदय थयो, ठेरठेर जिनमंदिर,
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, स्वाध्याय मंदिरो बन्यां. शासनप्रभावना अद््भूत रीते कूदके अने
भूसके वृद्धिगत थवा लागी अने हजारोनी संख्यामां जिनागमोना अनुवादो प्रकाशित थया.
वीतरागमार्गप्रति हजारोनी संख्यामां धर्मजिज्ञासुओनां वृंदो उमट्यां. एटलुं ज नहि परंतु
सुवर्णगढमां प्रतिष्ठित जिनेंन्द्रदरबार जिनमंदिरो, मानस्थंभ, धर्मसभा, प्रवचनमंडप, बोर्डींग
अने मुमुक्षुओना ब्रह्मचर्याश्रम, मोक्षमार्गी मकानोनी हारमाळा अने नित्य नियमित पणे थतुं
दर्शन–पूजन–भक्ति अने स्वामीजीनुं प्रवचन जोतां खरेखर आजे नानकडुं विदेह अने
धर्मसभा नजरे पडे छे.
प्रार्थना करीए छीए के आप शत शत जीवो अने आपना द्वारा जिनशासननी प्रभावनानी
पताका अणनम फरकती रहो.