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श्री पूज्यसद्गुरु श्री कानजीस्वामी
के करकमलोमें सादर समर्पित
अभिनन्दन–पत्र
हे सोनगढ के सन्त–
तीर्थयात्रा के प्रसंगसे आपने संघसहित हमारे इस लघुतम ग्राममें पधारकर जो हम
लोगोंको दर्शन देकर कृतार्थ किया है, उसके लिये हम आपके अत्यन्त आभारी हैं। हे
अध्यात्मगगनके प्रकाशमान सूर्य–
अनेक प्रकारके मिथ्यात्वरूपी अन्धकार के आच्छन्न जगतमें आपने जो अपूर्व स्थायी
प्रकाश दिया है, उसके प्रति हम आपके अतिशय कृतज्ञ हैं।
हे समयसार–सरोवर के राजहंस–
आपने जो जडचेतनमें एकत्वकी भ्रांतिको अपने प्रवचनोंसे विध्वस्त किया है तथा
जगतमें सर्वत्र व्याप्त अशांतिमय एवं भौतिकतावादी युगमें जो अध्यात्मवादकी धारा
प्रवाहीत की है उससे संपूर्ण देशका पापपंक अवश्य धुलेगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
हे गुजरातकी अद्भुत निधि–
आपने हमारे प्रांतमें आकर जो आत्महितका मार्ग प्रदर्शन किया है, उसके लिये
“धन्यवाद”।
हे जैनजगतके अतिथि–
साधनाभावसे हम आपकी यथोचित सेवा या अतिथिसत्कार न कर सके, इसके
लिये हमारा नवयुवकमंडल क्षमाप्रार्थी है।
स्वामीजी–
आपके आध्यात्मिक एवं गंभीर विवेचनों से शाहपुरका जैनसमाज अत्यन्त प्रभावित
है, संसारमें इस समय भवसंसार में डुबते हुए जीवोंको पार पहुंचानेकेलिये आप सच्चे
नाविक हैं। हम आशा रखते है कि आप हमलोगोंको पुनः एकबार सेवा करनेका अवसर
प्रदान करेंगे।
–आपका उपदेशामृतपिपासु
चैत्र शु. ८ गुरुवार श्री दि० जैन वीर सेवादल
वी. नि. सं. २४८५ शाहपुर [म० प्र०]