Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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ध....र्मा....त्मा....नो यो....ग
वैशाख सुद बीज....ए आत्मार्थी जीवोने माटे धन्य दिवस छे. ए दिवसे गुरुदेवनो मंगल
अवतार थयो....अने, तेमना प्रतापे, आ जगतमां महान दुर्लभ एवो धर्मात्मानो योग जिज्ञासु
जीवोने संप्राप्त थयो. आ जगतमां बधी वस्तुनो योग सुगम छे परंतु धर्मात्मानो योग बहु दुर्लभ छे.
एमांय आ हळहळता विषम काळमां धर्मात्मानो योग मळवो ते तो खरेखर रणमां तृषातुरने अमृत
मळवा जेवुं छे. जेम माबापनी हाजरी पण बाळकने प्रसन्नकारी ने हितकारी छे तेम धर्मात्मानो योग
मुमुक्षु जीवने प्रसन्नकारी ने हितकारी छे.
हे गुरुदेव! बलिहारी छे आपनी....के जेणे अमने आ काळे धर्मात्मानो योग आप्यो!
अनेकविध आधि–व्याधि–उपाधिथी भरेला आ असार संसारमां पण ज्यां आपश्री जेवा धर्मात्मानो
योग छे त्यां आत्मार्थी जीवोने कोई चिंता के मुंझवण केम होय? संसारथी रक्षण करनारी ने सदा
सन्मार्गे दोरनारी आपनी मंगळ छायामां अमने सदाय आनंद छे केमके आपना पावन जीवनने
ध्येयरूपे राखीने ज अमे अमारुं जीवन जीवी रह्या छीए. आपश्रीनी नीडरता मात्रथी जीवनना बधा
दुःखो भुंसाई जाय छे ने भक्ति–पुष्पोनी सौरभथी अमारुं जीवन महेकी ऊठे छे.....एमांय ज्यारे
आपनी मीठी नजर अने मधुरी वाणी अमारा उपर वरसे छे त्यारे अमारा आत्मामां अनुभवातो
आह्लाद.....ते तो जाणे आपश्रीना अतीन्द्रिय आनंदनी प्रसादी ज होय–एम अमने लागे छे. अने
आपश्रीना उपकारनुं स्मरण करतां ज आत्माना असंख्य–प्रदेशोरूपी सीतार झणझणीने तेमांथी
भक्तिनुं एवुं संगीत ऊठे छे के–
हे नाथ! आ बालकशिरे तुज छत्रछाया अमर हो.....
छूटे न कदीय सुयोग तुजनो, सिद्धपदनो साथ हो....
तारी अमीद्रष्टि झीली तुज चरणभक्तिथकी भजी.....
आनंदमय जीवुं जीवन...संसारनी माया तजी......
(ब्र. हरिलाल जैन)