Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म मासिकनो बीजो सैको
२००
आत्मिक शोर्यने उछाळनारी पू. गुरुदेवनी वाणी
आ अंकनी साथे “आत्मधर्म” ना अंकोनो बीजो सैको पूर्ण थाय छे. वीर सं. २४६९ना
मागशर सुद बीजे प्रसिद्ध थयेला प्रथम अंकथी शरू करीने आज सुधीना २०० अंकोमां जे कांईपण
पीरसायुं छे ते बधुंय परमकृपाळु पू. गुरुदेवनी अमृतवाणीनो ज नीचोड छे. जेम गुरुदेवनी पवित्र
मुद्रा उपर चैतन्यतेजनी चमक छे, तेम तेओश्रीनी अपूर्ववाणीमां आत्मिक शोर्यनो उल्लास छे.
तेओश्री वारंवार कहे छे के अरे जीव! आत्मामां ज रहेली परमात्मशक्तिनी प्रतीत करीने तारा
आत्मिक शोर्यने उछाळ! तारो आत्मा नमालो के तुच्छ नथी पण सिद्धपरमात्मा जेवा पूर्ण
सामर्थ्यवाळो प्रभु छे, माटे ते पूर्णताना लक्षे तारा आत्मवीर्यने उपाड.
अहो! पोतानी अपूर्व वाणीद्वारा पात्र जीवोने प्रभुता आपनार गुरुदेवनो उपकार अहीं कई
रीते व्यक्त करीए? पू. गुरुदेवनी प्रत्यक्ष वाणीए जेम अनेक सुपात्र श्रोताओने सन्मार्गमां स्थाप्या
छे तेम आ “आत्मधर्म” द्वारा पण तेओश्रीनी वाणीए अनेक सुपात्र जीवोने सन्मार्गमां आकर्ष्या छे.
पू. गुरुदेवनी वाणीमां झरता जैनशासनना मूळभूत कल्याणकारी विषयो चूटी चूंटीने आत्मधर्ममां
अपाय छे. आत्मार्थी जीवोने अपूर्व कल्याणना दातार एवा पू. गुरुदेवने अने स्वरूपबोधक
तेओश्रीनी वाणीने आवी भावनापूर्वक नमस्कार करीए छीए के–तेओश्रीनी कृपाद्रष्टि नीचे
‘आत्मधर्म’ नी वधु ने वधु प्रभावना थाओ.