जेठ: २४८६ : ३ :
‘आत्मधर्म’ मासिकनुं आ १७मुं वर्ष चाली रह्युं
छे ने आ तेनो २००मो अंक छे. अत्यारसुधीना
बधा अंकोनुं पुनरावलोकन करीने तेमांथी अति
संक्षेप दोहन आ अंकमां आपीए छीए. नीचे नं.
(१) थी नं. २००) सुधीमां आपेलुं लखाण
‘आत्मधर्म’ ना ते ते नंबरना अंकमांथी लेवामां
आव्युं छे. तेमांथी कोईपण लखाण संबंधी विशेष
जाणवानी ईन्तेजारी थाय तो ते नंबरनो अंक
वांचवा भलामण छे. अमने विश्वास छे के
अत्यारसुधीना १७ वर्षनुं आ संक्षिप्त दोहन
जिज्ञासु वांचकोने जरूर गमशे.
(१) हे सर्वोत्कृष्ट सुखना हेतुभूत सम्यग्दर्शन! तने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार हो.
(२) दरेक जीवनुं प्रथम कर्तव्य आत्माना स्वरूपनी यथार्थ श्रद्धा करवी ते ज छे. अनंतकाळे
दुर्लभ मनुष्यदेह तेमां उत्तम जैनधर्म अने सत्समागमनो जोग, आटलुं मळ्या छतां जो स्वभावना जोरे
सतनी श्रद्धा न करी तो चोराशीना जन्ममरणमां फरी आवो उत्तम मनुष्यदेह मळवो दुर्लभ छे.
(३) कोई आत्मा–ज्ञानी के अज्ञानी–एक परमाणु मात्रने हलाववानुं सामर्थ्य धरावतो नथी,
तो पछी देहादिनी क्रिया आत्माना हाथमां क््यांथी होय? ज्ञानी ने अज्ञानीमां आकाश–पाताळना अंतर
जेवडो महान तफावत छे, अने ते ए के अज्ञानी परद्रव्यनो तथा राग–द्वेषनो कर्ता थाय छे अने ज्ञानी
पोताने शुद्ध अनुभवतो थको तेनो कर्ता थतो नथी.
(४) १. किचित् मात्र आज सुधी परने (जीवने के जडने) लाभ के नुकशान
तें कर्युं ज नथी.
२. आज सुधी कोईए (जड के जीवे) किंचित् मात्र तने लाभ के नुकशान
कर्युं नथी ज.
३. आज सुधी सतत तें तारा माटे एकलो नुकशाननो ज धंधो कर्यो छे. अने साची
समजण नहि कर त्यां सुधी ते धंधो चालशे ज.