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ईन्दोर नगरीमां उजवायेलो गुरुदेवनो जन्मोत्सव
गुरुदेवने अभिनंदन ग्रंथ समर्पण करवा माटे थयेल प्रस्ताव
पू गुुरुदेवनो मंगल जन्मोत्सव वैशाख सुद बीजे अनेक स्थळे ऊजवायो; ईंदोरमां पण
गुरुदेवनो जन्मोत्सव उत्साहथी ऊजवायो हतो. अने ते वखते एक प्रस्ताव पण करवामां आव्यो
हतो...आ संबंधमां ईंदोरथी आवेल समाचार अहीं प्रकाशित करीए छीए–
“दिनांक २७–४–६० मिती वैशाख शुक्ला २ को श्रीपूज्य कानजीस्वामी का ७१ वां
जन्मदिवस इन्दोर लशकरी मंदिरमें मनाया गया। रात्रिको जैनरत्न शेठ माणकचन्दजी शेठी
मल्हारगंज इन्दोर की अध्यक्षतामें सभा की गई, उसमें जैनसिद्धान्तमहोदधि पं. नाथुलालजी
शास्त्री, पं. कोमलचन्दजी एडवोकेट. जे. लालचन्दजी, प्रकाशचन्दजी पांड्या, फूलचन्दजी
पांड्या और अमृतलालजी हंसराजजी के स्वामीजीके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं अपूर्व सेवा पर
भाषण हुए। सभापतिजीने जो प्रस्ताव रखा उसकी प्रतिलिपि सेवामें प्रेषित की जा रही हैः–
भारत के महान आध्यात्मिक संतोमें आत्मार्थी सत्पुरुष पूज्य श्री कानजीस्वामीका विशिष्ट
स्थान है। आप जैनधर्मका मर्मज्ञ, पूर्ण ब्रह्मचारी एवं प्रभावशाली वक्ता है, जिनके सदुपदेशसे
सौराष्ट्रके एवं अन्य स्थानोंके सहस्त्रों भाइयों व बहनों के ज्ञाननेत्र खुलकर उन्हें सन्मार्गका प्रतिबोध
प्राप्त हुआ है। स्वामीजी की ७१ वीं जन्मगांठ पर आज इन्दौर के दि. जैन बन्धुओंकी यह सभा
उनकी सेवाओंका अभिनन्दन करती हुई चिरायु कामना करती है और यह योजना प्रस्तुत करती
है कि जिनशासनप्रभावक स्वामीजी को एक अभिनन्दन ग्रंथ तैयार कर समर्पित किया जाय।”
सर्व सम्मतिसे स्वीकृत
हः माणकचन्द शेठी
सभापति
गुरुदेव प्रत्ये अभिनन्दनरूप आ प्रस्ताव करवा माटे ईन्दोरनी अध्यात्मप्रेमी जनताने अमे
अभिनंदन आपीए छीए अने तेमना आ प्रस्तावमां “आत्मधर्म” पोतानो साथ पुरावे छे.
जन्मोत्सवना उपलक्षमां ईन्दोरनो सन्देश
पू. गुरुदेवना ७१ मा जन्मोत्सव प्रसंगे ईंदोरथी सर हुकमीचंदजी शेठना सुपुत्र भैयासाहेब श्री
राजकुमारसिंहजी तरफथी आवेल सन्देश नीचे मुजब छे.
“हमें यह जानकर बडी प्रसन्नता हुई कि आत्मार्थी सत्पुरुष श्री कानजीस्वामीजी
महाराजका ७१ वां जन्मजयंति महोत्सव आप उनके जन्मस्थान उमरालामें मना रहा हैं। यह
एक अत्यंत महान दुर्लभ लाभ है। मैं इस अवसर पर उपस्थित होकर अवश्य धार्मिक लाभ
लेता परन्तु कार्यवश ऐसा न हो सकेगा अतएव आप सब लोगोंसे क्षमा चाहता हुआ आपके
उत्सवकी सफलता की कामना करता हुं।
अध्यात्ममूर्ति श्री कानजीस्वामीने जो दिगंबर जैनधर्मका प्रचार किया है वो पिछली कई
शताब्दियोंमें अभूतपूर्व है। अनेकों जिनमंदिरोंकी स्थापना तथा सन्मार्ग से भटके हुए लोगोंको
आत्मधर्मका उपदेश दे उन्हें मार्गदर्शन दिया है ऐसे संतप्रवरके लिए समाज जो कुछ भी
आदर–सन्मान करे वह उनका नहीं वरन अपनी समाजको ही गौरवान्वित करना है। आपके
सद््प्रयासमें मेरा पूर्ण सहयोग है।
भवदीय
राजकुमारसिंह
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशक: हरिलाल देवचंद शेठ : आनंद प्रि. प्रेस–भावनगर