जिसकी कृपा से आपके शुभ दर्शका लाहा लहा।।
आज सुजन समेत आ पावन किया यह द्वार है।
इस तीर्थयात्रा के समय में हृदय हर्ष अषार हैं।।१।।
करती शरद की पूर्णिमा हरषित चकोरों के लिये।
करता सजल वारिद सुखी संतप्त मोरों के लिये।।
त्यों आप हम सबके लिये अनुपम सजल वारिद बने।
पीयुष सम जिनके बरसते वचन शीतलता सने।।२।।
कितने न जाने आपने उपकार हैं हम पर किये।
सहते रहे हैं कष्ट भारी आप हम सब के लिये।।
इस ग्रीष्म ऋतु में भी सभी जन तीर्थयात्रा कर रहे।
हम अल्पज्ञानी मानवों को स्वात्मज्ञानी कर रहे।।३।।
लेकिन न सेवा आपकी हम लोग कूछ भी कर सके।।
अपने हृदय के भाव भी कह कर न आगे धर सके।
सन्मान हम कैसा करें यह भी नहीं हम जानते।
हां धर्मरक्षक आपको सच्चा हितैषी मानते।।४।।
जो कूछ हुई हो भूल हमसे ध्यान में मत लीजिये।
जैसा किया है तृप्त वैसा तृप्त फिर कीजिये।।
अपने हृदय के भाव कहिये कौन शब्दो में कहें।
आशा यही हम आपके अरु आप हम सबके रहें।।५।।