Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960).

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श्रीमान् परमपूज्य अध्यात्मसंत श्री कानजीस्वामी के
करकमलों मे सादर समर्पित
* अभिनन्दन पत्र *
हे विद्वद्वरेण्य!
आज हमारे परम सौभाग्य का दिन है कि आपने असीमकृपा एवं कष्ट सहन
कर अपनी परम पुनित पवित्र पावन तीर्थयात्रा के अमूल्य समयमें से कुछ समय
निकालकर श्री १०८ श्री अतिशयक्षेत्र पनागर की यात्रा का लाभ लेते हुए, हम लोगों
को दर्शन देने की कृपा की है। अतएव समस्त जैनसमाज पनागर आपका सादर
अभिवादन एवं प्रेमपूर्वक स्वागत करती है।
पूज्यवर!
आपके दिव्योपदेशद्वारा अनेक बन्धुओने बाह्याडंबर और अंधविश्वास खोकर
धर्मका सत्स्वरूप समझ अपनी आत्मानुभूतिका अमृतपान कर सत्य की प्रतिष्ठाहेतु
सद्धर्म को ग्रहण किया है। अतएव जैनसमाज आपकी चिरकृतज्ञ एवं ऋणी है।
धर्मदिवाकर!
श्री वीर हिमाचलसे प्रवाहित ज्ञानगंगा के शांतिसुधावितरक भगवान
कुंदकुंदाचार्य की बहुमुल्य धरोहर अध्यात्मज्योति को लेकर आज आप घर घर
अलख जगाते हुवे धर्मदुंदुभी की उद्धोषणा एवं देशव्यापी व्यापक प्रचार कर रहे है।
जिससे समाज का परम कल्याण होरहा है।
सद्धर्मप्रचारक!
जिस सौराष्ट्र प्रान्त में श्री दिगंबर जैनमंदिरों के एक दो जगह भी दर्शन
दुर्लभ थे, उस प्रान्त में आज अनेको जगह श्री दिगंबर जैन जिनमंदिरों का निर्माण
कराकर अनेकों जैन बन्धुओं को सद्धर्म के मार्ग पर लगाया है, जिसका परम श्रेय
आपही को है।
परमप्रभावक!
आपकी धर्मदेशनाने अनर्रहस्य उद्धाटित सोनगढ को स्वर्गपुरी बना डाला
है। अतएव आपका यशसौरभ दिगदिगन्त व्याप्त हो हम सबको आपका यशोगान
करने की प्रेरणा कर रहा है। अतः आपकी सेवामें तुच्छ श्रद्धा के सुमन चढाकर
अपनी भक्ति प्रदर्शित करते है।
धर्मधुरंधर!
अंतमें श्री वीरप्रभुसे करबद्ध प्रार्थना करते है कि पूज्यवर्य कानजीस्वामी
चिरकाल तक धर्मोपदेशद्वारा जगत का कल्याण करते रहें।
दि० १३–४–१९५९ –हम है आपके चरणचंचरिक
सकल दिगम्बर जैन समाज पनागर [जिला जबलपूर]