Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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श्रीवीतरागाय नमः
नमः श्रीवर्द्धमानाय निद्धूतकलिलात्मने।
सलोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते।।१।।
परमश्रध्धेय, परमात्मतत्त्ववेत्ता, सौराष्ट्रना संत, आत्मार्थी नरपुंगव,
श्रीमत् माननीय पूज्य श्री कानजीस्वामी
ना पुनित करकमलोमां सादरसमर्पित
अभिनंदन पत्र
परमश्रध्धेय,
सौराष्ट्रना आत्मार्थी संतनी अने तेओश्रीनी अमृतसमान वाणी सुणवानी घणा
लांबा समयथी गुजरातना जैन समाजे जिज्ञासा राखेली, ते अमारा सद्भाग्ये आपनी
पधरामणी थवाथी जेम “चकोराणां चंद्र कुसुमसमयकानानै भुवाम.” ते रीते
सोनासणना साधर्मी भाईओनां हृदय आजे आनंदसागरमां उछळी रह्यां छे.
,
ज्यां जुओ त्यां परद्रव्यनी कर्ताबुध्धिनी अने रागद्वेषयुक्त कषायी प्रवृत्तिओ चाली
रही छे परंतु पंचमकाळमां आपनो वीतरागी उपदेश मिथ्यात्वनो नाश करी रह्यो छे एटलुं
ज नहि परंतु निमित्त आधीन द्रष्टिमांथी छोडावी परमात्मा प्रति द्रष्टि करावी रह्यो छे.
आध्यात्मिक संत,
सौराष्ट्रमां जेम दिगंबर समर्थ धरसेन आचार्यवर तेमज श्रीमद् राजचंद्र
आध्यात्मिक संतो थई गया तेवी रीते आ काळे आपे पण आखा सौराष्ट्रभरमां
दिगंबर जैन मार्गनी स्थापना करी आखा सौराष्ट्रने दिगंबरत्वथी मढी दीधुं. उपादान,
निमित्त, द्रव्य गुणपर्याय, छ द्रव्य, सात तत्त्वो, पंचास्तिकाय, उत्पाद–व्यय ध्रौव्य,
निश्चय–व्यवहार वगेरेनुं अने आगम अने आध्यात्मिक शास्त्रोनुं दोहन करी जगतना
जीवोना कल्याणअर्थे आध्यात्मिक धोध वहेवराव्यो छे. वळी श्री भगवान कुंदकुंदाचार्य
आदि मुनिवरोद्वारा रचित समयसारादि ग्रंथोनुं अध्ययन करी तेनो गुजरातीमां
अनुवाद करावरावी जिनशासनने शोभाव्युं छे.
जेम १००८ त्रिलोकनाथ धर्मतीर्थनायक तीर्थंकरदेव धर्मपिताओए समोसरण द्वारा
विहार करी उपदेश द्वारा दुनियाने मोक्षनो साचो रस्तो बताव्यो हतो अने हजारो
भव्यजीवो बूझी पोतानुं आत्मकल्याण करी गया तेम भारतनो आखो दि. जैन समाज
आपनी मधुर आध्यात्मिक वाणीथी वीतराग मार्ग प्रति वळी रह्यो छे तेथी हे
सौराष्ट्रना संत, आपने धन्य छे! धन्य छे.!
अंतमां अमे अंतःकरणपूर्वक अमारा भावो उछळवाथी आपनुं भव्य स्वागत
उमळकापूर्वक करी आ पुष्पमाळ आपने अभिनंदनपत्ररूपे समर्पित करीए छीए अने
श्री आदिनाथ भगवानश्रीने प्रार्थना करीए छीए के आपनुं आयुष्य दीर्घायुं थाओ
अने भव्यजीवोने धर्मप्राप्तिना लाभनुं कारण बनो.
ता. ७–प–प९ लि. विनयवंत
श्री सोनासण दिगम्बर जैन समाज
नवल कुसुम अर्पुं हुं, सौराष्ट्रना आध्यात्मिक संत
गुजरात जैन संघ चाहे, आपो ज्ञान गुणवंत