Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म: २०१:
* आ वखते विद्यार्थीओना शिक्षणवर्गमां १७प जेटला विद्यार्थीओ आव्या हता; श्रावण
मासनो प्रौढ शिक्षणवर्ग आ वर्षे खोलवामां आवनार नथी.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा: वैशाख वद आठमना रोज गढडावाळा भाई नागरदास चकुभाई तथा
तेमना धर्म पत्नी गीरजाबेने पू. गुरुदेव पासे आजीवन ब्रह्मचर्यप्रतीज्ञा अंगीकार करी छे.
*वैराग्य समाचार: सरसाईना भाईश्री जेचंदभाई टीडाभाई गांधी जेठ सुद १४ ना रोज
लकवानी बिमारीमां वर्धां गामे स्वर्गवास पाम्या छे. पू. गुरुदेव प्रत्ये तेमने भक्तिभाव हतो.
‘आत्मधर्म’ वगेरेमांथी तेमणे स्वाध्याय माटेनी एक बुक उतारी हती; अने तेओ अवारनवार
सोनगढ आवता त्यारे ते स्वाध्याय बोलता. पू. गुरुदेवे बतावेल तत्त्व संस्कारमां आगळ वधीने
तेओ पोतानुं आत्महित साधे, अने तेमना कुटुंबीजनो पण तत्त्वप्रेममां आगळ वधे–ए ज भावना.
*त्रीजा सैकानो प्रारंभ: “आत्मधर्म” मासिकना आ २०१ मां अंकथी त्रीजो सैको शरू थाय
छे....त्रीजा सैकाना प्रारंभे परमकृपाळु गुरुदेवना चरणोमां नमस्कार करीए छीए.....ने “आत्मधर्म”
नी खूब प्रभावना थाय एम ईच्छीए छीए.
धर्मात्मानी
परिणतिना झणकार
जेने भेदज्ञान थयुं छे एवो धर्मात्मा पोताना
आत्माने केवो अनुभवे छे तेनुं आ वर्णन छे: अंतर्मुख
थईने अनाकुळपणे, एक ज्ञान ज हुं छुं–एम स्वयमेव
पोते पोताने अनुभवे छे. अनेक पदार्थोनी वचमां रह्यो
होवां छतां निश्चयथी हुं एक छुं–आवो निश्चय कर्यो
होवाथी परद्रव्यो प्रत्येथी पोतानी परिणतिने संकेलीने
एक स्वद्रव्यनी सन्मुखताथी स्वभावनो स्वाद ल्ये छे.
समस्त परद्रव्योथी भिन्न एवा स्वद्रव्यना अतीन्द्रिय
आनंदना स्वादने लीधे ते धर्मात्मा समस्त परद्रव्यो
प्रत्ये निर्मम छे,–कोई पर परद्रव्य अंश मात्र पोतापणे
भासतुं नथी, एक ज्ञायकस्वभावने ज सदाय पोतापणे
अनुभवे छे. आवो अनुभव करनार धर्मात्मा
ज्ञानदर्शनस्वभावमां ज वर्ततो थको पोताना
ज्ञायकबागमां केली करे छे. ज्ञायकबागमां निजानंदनी
केली करतां करतां ते धर्मात्मानी परिणतिमां एवा
झणकार ऊठे छे के–
शुं एक शुद्ध ममत्वहीन हुं ज्ञानदर्शनपूर्ण छुं,
एमां रही स्थित लीन एमां शीघ्र आ सौ क्षय करुं.