(
सेवा करी हती. जेठ वद त्रीजना दिवसे सवारमां गुरुदेवे सीमंधर भगवानना दर्शन कर्या, त्यारबाद
सौ भाई–बेनोए घणा भावपूर्वक गुरुदेवनी स्तुति करी. अने गुरुदेवे कह्युं;
त्यारपछी आठ दिवसे रूझ आवी जतां जेठ वद ११ ना रोज पाटो छोडी नांखवामां आव्यो छे. .....
गुरुदेवनी आंखे संपूर्ण आराम छे. हाल आंखे आराम लेवानो होवाथी वांचवानुं बंध छे, तेथी
गुरुदेवना प्रवचनो पण बंध छे. श्रावण मासमां प्रवचनो शरू थवानो संभव छे. गुरुदेवनी आंखे
जलदी संपूर्ण सारुं थई जाय ने तेओश्रीनी पुनित वाणी द्वारा आपणने जलदी आत्मबोध मळे–एवी
सौनी हार्दिक भावना छे.
आनंदोल्लासथी ऊजवायो हतो. सवारमां पूजनादि बाद जिनेन्द्र भगवाननी तथा समयसारजीनी
रथयात्रा नीकळी हती, तेमां नृत्य–भजन–संगीत वगेरे घणा उल्लासकारी हता. भगवाननी रथयात्रा
सोनगढना बागमां गई हती. छठ्ठने दिवसे भक्ति समवसरणमां थई हती; भक्ति एवी अद्भुत हती
के, भक्ति करतां करतां गुरुदेवना हृदयमां सीमंधरनाथना साक्षात् दर्शन करनार कुंदकुंदाचार्यदेव प्रत्ये
विशिष्ट बहुमाननो एवो प्रमोद जाग्यो के पोताना हस्ताक्षरे आ प्रमाणे लखीने ते प्रमोद व्यक्त कर्यो;
“भरतथी महाविदेहनी मूळ देहे जात्रा करनार श्री कुंदकुंदआचार्यनी जय हो, जय हो. “
वास्तु होवाथी गुरुदेवनुं प्रवचन तेमज श्रुतपूजन पण तेमना घरे मंडपमां थयुं हतुं. सांजे
जिनमंदिरमां जिनवाणीमातानी खास भक्ति थई हती.