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वर्ष सत्तरमुं: अंक ९ मो संपादक: रामजी माणेकचंद दोशी अषाड : २४८६
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सर्वज्ञनी कृपानुं फळ मोक्ष छे.
आ जेठ वद त्रीजनी सवारमां सीमंधर भगवानना दर्शन
बाद गुरुदेवे भावभीना चित्ते कह्युं के: “भगवान सर्वज्ञदेवनी
कृपानुं फळ मोक्ष छे; अने ज्ञानस्वभावनो जेणे निर्णय कर्यो छे तेना
उपर भगवान सर्वज्ञनी कृपा छे, तेनी निकट मुक्ति सर्वज्ञ भगवान
देखी रह्या छे, ए ज भगवाननी कृपा छे.”
पोताना ज्ञानमां जेणे सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे अने
अंतर्मुंख थईने ज्ञानस्वभावनी सम्यक् प्रतीति–ज्ञान–रमणता प्रगट
करीने जे मोक्षमार्गी थयो छे एवो धर्मात्मा सर्वज्ञना उपकारनी
प्रसिद्धि करतां कहे छे के अहो परमात्मा! आपनी मारा उपर कृपा
थई.....आपनी कृपाना प्रसादथी ज हुं मोक्षमार्ग पाम्यो....मोक्षरूप
परमआनंद ते खरेखर आपनी कृपानुं ज फळ छे. –कोण कहे आम!
के जेणे पोताना हृदयमां सर्वज्ञने बेसाडीने, ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा
करी छे, एटले अंतर्मुख थईने चिदानंद परमात्मानी प्रसन्नता जेणे
मेळवी छे.......ते विनयना प्रसंगे उपकारीनो उपकार प्रसिद्ध करतां
कहे छे के अहो नाथ! आप मारा उपर प्रसन्न थया......आपनी
प्रसादीथी ज हुं परम आनंद पाम्यो....आपना अनुग्रहरूप कृपाथी
ज हुं मोक्षमार्ग पाम्यो.
–आ रीते साधक सन्तो उपर सर्वज्ञनी कृपा छे.
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