Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म: २०१
ज्ञानस्वभावना अवलंबननो महिमा
(१) प्रश्न:– आत्मानुं निजपद कयुं छे?
उत्तर:– ज्ञान ते आत्मानुं निजपद छे.
(२) प्रश्न:– हे गुरुदेव! प्राप्त करवा योग्य पद कयुं छे?
उत्तर:– आ ज्ञानस्वरूप निजपद छे ते एक ज प्राप्त करवा योग्य पद छे, बीजा बधा भावो ते
अपद छे, अपद छे.
(३) प्रश्न:– ज्ञान ते ज निजपद केम छे?
उत्तर:– केमके ज्ञान ज आत्माना तत्स्वभावपणे अनुभवाय छे तेथी ते ज आत्मानुं निजपद
छे.
(४) प्रश्न:– रागादि भावो ते अपद केम छे?
उत्तर:– केमके ते रागादिभावो आत्माना स्वभावपणे नथी अनुभवाता, पण आत्माना
स्वभावथी अतत् पणे (–भिन्नपणे) अनुभवाय छे, तेथी आत्माने माटे ते अपद छे.
(प) प्रश्न:– ते रागादि भावो केवा छे?
उत्तर:– ते रागादि भावो बधाय पोते अस्थायी होवाथी आत्माने रहेवानुं स्थान थई शकवा
योग्य नथी.
(६) प्रश्न:– ज्ञानपद केवुं छे.?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावरूप निजपद छे ते पोते स्थिर होवाथी आत्माने रहेवानुं स्थान थई
शकवा योग्य छे.
(७) प्रश्न:– आ जाणीने शुं करवुं?
उत्तर:– ‘रागादि परभावो अपद छे ने ज्ञानभाव ते निजपद छे’–आम जाणीने अपदभूत
एवा पर भावोने छोडवा, ने निजपदरूप एवा ज्ञानने एकने ज आस्वादवुं.
(८) प्रश्न:– ते ज्ञाननो स्वाद केवो छे?
उत्तर:– ते ज्ञान परमार्थरसपणे स्वादमां आवे छे. जगतना कोई पण विषयमां जे रसनी गंध
पण नथी एवो अतीन्द्रिय आनंदरस ज्ञानमां भरेलो छे, तेना अनुभवमां आनंदरसनो स्वाद
आवे छे.
(९) प्रश्न:– आ ज्ञानस्वरूप निजपद केवुं छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वरूप निजपद छे ते विपत्तिओनुं अपद छे, तेमां कोई विपत्ति आवी शकती
नथी.
(१०) प्रश्न:– ज्ञानस्वरूप निजपद पासे बीजा पदो केवा छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वरूप निजपद पासे बीजा बधा पदो अपद छे.
(११) प्रश्न:– आ आत्मा ज्यारे ज्ञानरसनो अनुभव करे छे त्यारे ते शुं करे छे?
उत्तर:– ज्यारे आ आत्मा ज्ञायकभावथी भरेला महास्वादने अनुभवे छे त्यारे बीजा
विरसनो (रागादिनो) स्वाद लेवाने असमर्थ थाय छे, तथा ज्ञानना अद्वितीयस्वादना
अनुभवमां लीन थयेलो ते आत्मा, ज्ञानना विशेषोने गौण करीने सामान्यमात्र ज्ञानने
अभ्यासतो सकळ ज्ञानने