अषाड: २४८६ : प :
एकपणामां लावे छे. अतीन्द्रिय आनंदथी भरेला स्वरूपज्ञानना रसीला स्वाद आगळ बीजा
बधा रस तेने फीक्का लागे छे अने ते अनुभव वखते पोते ज पोताना ज्ञेयरूपे थाय छे.
(१२) प्रश्न:– छद्मस्थने आवा ज्ञानरसनो स्वाद आवी शके?
उत्तर:– हा, शुद्धनयद्वारा छद्मस्थने पण आवा ज्ञानरसनो स्वाद आवी शके छे.
(१३) प्रश्न:– मोक्षनो उपाय शुं छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वरूपनो अनुभव ते एक ज मोक्षनो उपाय छे. आत्मा पोते ज्ञानस्वरूप परम
पदार्थ छे; जे आ ज्ञान नामनुं एक पद छे ते आ परमार्थस्वरूप साक्षात् मोक्ष–उपाय छे.
(१४) प्रश्न:– ज्ञानमां मतिज्ञानादि अनेक भेदो छे, छतां तेने ‘एक पद’ केम कह्युं?
उत्तर:– केमके, ज्ञानमां जे मतिज्ञानादि अनेक भेदो छे तेओ आ एक ज्ञानपदने भेदता नथी
परंतु उलटा अभिनंदे छे. पर्यायमां मतिज्ञानादिना अनेक प्रकारोने लीधे कांई एक
ज्ञानस्वभाव भेदाई जतो नथी, परंतु ते ज्ञानपर्यायो अंतर्मुख थतां ज्ञानस्वभाव साथे
अभेद थईने तेनी एकताने अभिनंदे छे.
(१प) प्रश्न:– मोक्षार्थी जीवे शुं करवुं?
उत्तर:– मोक्षार्थी जीवे, आत्मस्वभावभूत ज्ञाननुं ज आलंबन करवुं; तेनाथी मोक्ष पमाय छे.
(१६) प्रश्न:– अनेकान्तमार्गनुं फळ शुं छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वरूप निजपदनी प्राप्ति ते ज अनेकान्तनुं फळ छे.
(१७) प्रश्न:– शुं करवाथी निजपदनी प्राप्ति थाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज निजपदनी प्राप्ति थाय छे.
(१८) प्रश्न:– शुं करवाथी भ्रांतिनो नाश थाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज भ्रांतिनो नाश थाय छे.
(१९) प्रश्न:– शुं करवाथी आत्मलाभ थाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज आत्मानो लाभ थाय छे.
(२०) प्रश्न:– शुं करवाथी अनात्मानो परिहार थाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावना अवलंबनथी ज अनात्मानो परिहार सिद्ध थाय छे.
(२१) प्रश्न:– ‘अनात्मानो परिहार’ एटले शुं?
उत्तर:– आत्माना स्वभावथी भिन्न एवा परद्रव्यो ने परभावो ते अनात्मा छे, तेनुं पोताथी
भिन्नपणुं सिद्ध थाय ते अनात्मानो परिहार छे.
(२२) प्रश्न: शुं करवाथी कर्मनुं जोर तूटी जाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज कर्मनुं जोर तूटी पडे छे.
(२३) प्रश्न:– शुं करवाथी राग–द्वेष–मोह उत्पन्न थता नथी?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज राग–द्वेष–मोह उत्पन्न थता नथी.
(२४) प्रश्न:– शुं करवाथी कर्म फरीने आस्रवतुं नथी?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज कर्मनो आस्रव थतो नथी.
(२प) प्रश्न:– शुं करवाथी कर्म बंधातुं नथी?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज कर्म बंधातुं नथी.
(२६) प्रश्न:– शुं करवाथी कर्म निर्जरी जाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी कर्म निर्जरी जाय छे.
(२७) प्रश्न:– शुं करवाथी साक्षात् मोक्ष थाय छे?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी ज समस्त कर्मनो अभाव थईने मोक्ष थाय छे.
(२८) प्रश्न:– ज्ञानना अवलंबननुं शुं माहात्म्य छे?
उत्तर: आ बधुं ज्ञानना अवलंबननुं ज माहात्म्य छे के जेनाथी निजपदनी प्राप्ति थाय छे,
भ्रांतिनो नाश थाय छे, आत्मानो लाभ थाय छे, अना–