कर्म आस्रवतुं नथी, फरी कर्म बंधातुं नथी, बंधायेलुं कर्म निर्जरी जाय छे ने समस्त कर्मनो
अभाव थईने साक्षात् मोक्ष थाय छे.
आत्मानुं ध्यान करवुं.....तेनाथी सर्व सिद्धि थाय छे.
आज्ञा छे; केम के ते ज मोक्षनो हेतु छे.
शकता नथी, परंतु जो तने मोक्षनी ईच्छा छे तो तुं ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करीने आ
निजपदने प्राप्त कर....बीजा जीवो सामे न जो. हे मोक्षार्थी! आत्मानी परम प्रीति करीने तुं
तारा ज्ञान स्वभावनुं अवलंबन कर.
परमसुख थशे....तारो आत्मा स्वयमेव आनंदित थशे.......अधिक शुं कहीए? तुं पोते ज ते
क्षणे ज स्वयमेव ते परमसुखने देखशे.....तारे बीजाने पूछवुं नहि पडे.
वर्तमान आनंद अनुभवाय छे अने थोडा ज काळमां
ज्ञानानंदस्वरूप केवळज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. आवुं करनार
पुरुष ज ते सुखने जाणे छे, बीजानो तेमां प्रवेश नथी.
बीजा कोई परिग्रहना सेवनथी शुं साध्य छे?