Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: २०१
त्मानो परिहार थाय छे, कर्म जोरावर थई शकतुं नथी, राग–द्वेष–मोह उत्पन्न थता नथी, फरी
कर्म आस्रवतुं नथी, फरी कर्म बंधातुं नथी, बंधायेलुं कर्म निर्जरी जाय छे ने समस्त कर्मनो
अभाव थईने साक्षात् मोक्ष थाय छे.
उत्तर:– ज्ञानस्वभावनुं आवुं माहात्म्य जाणीने, एक ज्ञानसामान्यनुं अवलंबन लई
आत्मानुं ध्यान करवुं.....तेनाथी सर्व सिद्धि थाय छे.
उत्तर:– ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवानुं ज जिनागमनुं फरमान छे, ते ज संतोनी
आज्ञा छे; केम के ते ज मोक्षनो हेतु छे.
उत्तर:– हे भाई! जगतना घणाय जीवो तो ज्ञानरहित अज्ञानी होवाथी आ ज्ञानपदने पामी
शकता नथी, परंतु जो तने मोक्षनी ईच्छा छे तो तुं ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करीने आ
निजपदने प्राप्त कर....बीजा जीवो सामे न जो. हे मोक्षार्थी! आत्मानी परम प्रीति करीने तुं
तारा ज्ञान स्वभावनुं अवलंबन कर.
उत्तर:– हे वत्स! ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करवाथी तत्क्षणे ज तने वचनथी अगोचर एवुं
परमसुख थशे....तारो आत्मा स्वयमेव आनंदित थशे.......अधिक शुं कहीए? तुं पोते ज ते
क्षणे ज स्वयमेव ते परमसुखने देखशे.....तारे बीजाने पूछवुं नहि पडे.
ज्ञानमात्र आत्मामां लीन थवुं, तेनाथी ज संतुष्ट थवुं
अने तेनाथी ज तृप्त थवुं–ए परम ध्यान छे. तेनाथी
वर्तमान आनंद अनुभवाय छे अने थोडा ज काळमां
ज्ञानानंदस्वरूप केवळज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. आवुं करनार
पुरुष ज ते सुखने जाणे छे, बीजानो तेमां प्रवेश नथी.
अहा! आत्मानो ज्ञानस्वभाव आवा अचिंत्य–
महिमावाळो छे, तो पछी तेनुं अवलंबन करनार ज्ञानीने
बीजा कोई परिग्रहना सेवनथी शुं साध्य छे?
(–समयसार निर्जराअधिकार उपरनां प्रवचनोना आधारे)