Atmadharma magazine - Ank 202
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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[दक्षिण तीर्थंयात्रा प्रसंगे]
आत्मार्थी परम सन्त पूज्य श्री कानजीस्वामीकी सेवामें
सादर समर्पित
सन्मान–पत्र
सन्त श्रेष्ठ,
अनादिबद्ध द्रढ मोहपरंपराके दुर्भेध तमको चीरकर आपने जिस
आत्मतत्त्वको लक्ष कर अभियान किया है उससे एक प्रशस्त पन्थका निर्माण हुआ
है जिससे अनेकों भव्यात्मा आत्मनिधिका लाभ लेनेमें समर्थ हो रहे हैं।
प्रातःस्मरणीय पूज्य कुन्दकुन्ददेवकी अमृतवाणीका पान करके और कराके
भवसंताप को भेटनेका जो निरंतर अध्धवयास किया है वह स्तुत्य एवं
अनुकरणीय है।
आत्मतत्त्वाम्बुज–रसिक,
आत्मतत्त्वके अनिर्वचनीय स्वानुभवगम्य रसास्वादन के हेतु आत्माकी
जिस उपादान शक्तिका एवं निश्चयधर्म का निर्विवादरूपसे प्रकाश किया है उसीसे
निमित्तको नैमित्तकता एवं व्यवहारको व्यवहारत्व प्राप्त हुआ है, आपकी इस
परीक्षा–प्रधानताने धर्मके उभयमार्ग में सच्चा सामज्जस्य स्थापित किया है।
अतिथिवर,
आपके समागम दर्शनका अपूर्व लाभ लेनेमें पूज्य क्षु० गणेशप्रसादजी
वर्णीजी महाराजका सहसा स्मरण हो आता है। जिस संस्थाके प्रांगणमें आपके
स्वागतका अवसरलाभ ले रहे है एैसी अगणित सांस्कृतिक शिक्षा संस्थाऐं
स्थापित कर उस महात्माने धर्म और संस्कृतिका उधोत किया है, आप और उन
जैसे महान सन्तोंकी अमृतवाणीका पान करने का हम लोग निरंतर अवसर प्राप्त
करते रहें यही भावना है।
अध्यात्मप्रवक्ता,
आपकी वाणीमें ओज एवं प्रभाव है, हृदयसे आत्माकी विभा फुटी पड रही
है, मूर्तिमें सौम्य है, तेजस्वितासे दीप्तिमान हैं इसीसे प्रभावित होकर हम और
समस्त आत्मश्रद्धानी जन आपसे प्रभावित हो अभिनन्द करनेको विवश हो रहे
है।
तिथि चैत्र शुक्ला ११ हम है आपके विनम्र श्रद्धालु
दिनांक २०–४–५९ जनता हाइस्कूल एवं समाज
बडामलहरा [छतरपुर, म
. प्र.]
शत् शत् स्वागत