Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २०३
आ ज्ञानस्वरूप आत्मतत्त्वमां अनंत शक्तिओ रहेली छे, तेनो अनुभव करतां सम्यग्दर्शन
अने सम्यग्ज्ञान थाय छे. ते आत्मतत्त्वनुं दोहन करीने अहीं तेनी ४७ शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन
आचार्यदेवे कर्युं छे.
देहथी ने विकारथी जुदुं आत्मतत्त्व शुं चीज छे? तेनुं यथार्थ भेदज्ञान करतां जीवने
अनादिकाळमां आवडयुं नथी. प्रथम तो आत्मा सिवायना अनंत परपदार्थो आ आत्माथी अत्यंत
भिन्न छे, मारो आत्मा ते कोई पण पदार्थना कारणरूपे नथी, ने ते कोई पण पदार्थ मारा कारणरूपे
नथी;–आवो निर्णय कर्यो एटले बधाय पर पदार्थोमांथी ऊठीने द्रष्टिने स्वमां एकमां ज आववानुं
रह्युं. जेम समुद्रनी वच्चे भरदरिये वहाण चाल्युं जतुं होय तेमां पंखी बेठुं होय, ते पंखी ऊडी ऊडीने
अंते तो ते वहाण उपर ज बेसवानुं छे, बीजो कोई आश्रय छे ज नहि तेम परथी भिन्न आत्मानो
निर्णय करनार जीवने आ संसारसमुद्रमां बीजे कयांय शरण भासतुं नथी, एक पोताना आत्मानो ज
आश्रय छे एटले तेना श्रद्धा–ज्ञानने फरी–फरीने एक आत्माने ज अवलंबवानुं रह्युं.
आत्मामां पण जे रागादि आस्रवभावो छे ते आत्माना चिदानंदस्वभावथी भिन्न छे. आस्रव ते
आत्मानी शक्तिमां नथी. शुभाशुभभावो चैतन्यशक्तिने स्पर्शता नथी. आवा चैतन्यतत्त्वनी
शक्तिओनुं वर्णन करवानुं छे. प्रथम तो जेनी शक्तिओनुं ज्ञान करवानुं छे तेने परथी ने विकारथी
भिन्न जाणवो जोईए. केमके चैतन्यना सर्व गुणो चैतन्यमां ज छे.–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण, केवळी बोले एम,
प्रगट अनुभवो आतमा, निर्मळ करो सप्रेम रे
चैतन्यप्रभु! प्रभुता तारी चैतन्यधाममां
भगवान सर्वज्ञपरमात्मा कहे छे के हे जीव! तारा गुणो–तारी शक्तिओ तारा चैतन्यधाममां ज
छे, तारो कोई गुण बहारमां नथी. चैतन्यनी अशांति पण बहारमां नथी ने चैतन्यनी शांति पण
बहारमां नथी, अंदरमां शांतिस्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज शांति प्रगटे छे. जुओ, आ शांतिमां नवे
तत्त्वो समाई जाय छे.
जेमां शांति त्रिकाळ भरी छे ने जेना आश्रये शांति प्रगटे छे ते जीवतत्त्व छे. जीवने भूलीने
अजीवना आश्रये शांति लेवा मांगे छे ते अज्ञान छे–भ्रम छे. आस्रव–बंध तेमज पुण्य–पापना
परिणाम ते आकुळतारूप छे, ते चारेयनो समावेश ‘अशांति’मां थाय छे. चिदानंद स्वभाव तरफ वळतां
जे अंशे शांति प्रगटी ने जेटली अशांति टळी तथा क्षणे क्षणे जे शांति वधती जाय छे ने अशांति टळती
जाय छे–तेमां संवर–निर्जरा तत्त्व आवी जाय छे. ने अशांतिनो सर्वथा अभाव थईने संपूर्ण शांति प्रगटे
तेनुं नाम मोक्ष छे. आ सिवाय बहारना बीजा साधनथी शांति लेवा मांगे तो ते कदी मळी शकती नथी.–
कयांथी मळे? केमके “ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण.” परमां आत्मानी शांति छे ज नहि तो त्यांथी ते केम
मळे? चैतन्यना सर्वगुण–शांति–सुख–आनंद–प्रभुता वगेरे चैतन्यमां ज छे, त्यां शोधे तो ज ते मळे.
भाई, तारी शांतिनुं साधन कोण? तारो चैतन्यस्वभाव ज तारी शांतिनुं साधन छे. आ हाथ–
पग आंख–कान ते कांई तारा अवयवो नथी ने ते कांई तारा सुखनां साधनो नथी. सिद्धभगवंतोने
हाथ पग नथी तेथी शुं ते कांई दुःखी छे?–ना; हाथ–पग वगर ज तेओ सुखी छे, केमके हाथ पग ते
कांई आत्माना सुखनुं साधन नथी.
सिद्धभगवाननी जेम निगोदियाने हाथ पग नथी; परंतु, शुं हाथ पग न होवाने कारणे ते
दुःखी छे? ना, ते पोताना मोहभावथी ज दुःखी छे. ए ज रीते कोई जीवने (पतिया रोगी वगेरे) हाथ
पग वगेरे अवयव तूटी गया होय, तो शुं ते अवयव तुटया तेने कारणे ते दुःखी छे? ना; “आ हाथ
पग मारा अवयव हता ने ते मारा सुखना साधन हता” एवी परना साधनपणानी जे मिथ्या
कल्पना करी राखी छे तेने लीधे ज ते दुःखी छे. समकिती–धर्मात्माने हाथ पग वगेरे