आचार्यदेवे कर्युं छे.
भिन्न छे, मारो आत्मा ते कोई पण पदार्थना कारणरूपे नथी, ने ते कोई पण पदार्थ मारा कारणरूपे
नथी;–आवो निर्णय कर्यो एटले बधाय पर पदार्थोमांथी ऊठीने द्रष्टिने स्वमां एकमां ज आववानुं
रह्युं. जेम समुद्रनी वच्चे भरदरिये वहाण चाल्युं जतुं होय तेमां पंखी बेठुं होय, ते पंखी ऊडी ऊडीने
अंते तो ते वहाण उपर ज बेसवानुं छे, बीजो कोई आश्रय छे ज नहि तेम परथी भिन्न आत्मानो
निर्णय करनार जीवने आ संसारसमुद्रमां बीजे कयांय शरण भासतुं नथी, एक पोताना आत्मानो ज
शक्तिओनुं वर्णन करवानुं छे. प्रथम तो जेनी शक्तिओनुं ज्ञान करवानुं छे तेने परथी ने विकारथी
भिन्न जाणवो जोईए. केमके चैतन्यना सर्व गुणो चैतन्यमां ज छे.–
प्रगट अनुभवो आतमा, निर्मळ करो सप्रेम रे
चैतन्यप्रभु! प्रभुता तारी चैतन्यधाममां
बहारमां नथी, अंदरमां शांतिस्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज शांति प्रगटे छे. जुओ, आ शांतिमां नवे
तत्त्वो समाई जाय छे.
परिणाम ते आकुळतारूप छे, ते चारेयनो समावेश ‘अशांति’मां थाय छे. चिदानंद स्वभाव तरफ वळतां
जे अंशे शांति प्रगटी ने जेटली अशांति टळी तथा क्षणे क्षणे जे शांति वधती जाय छे ने अशांति टळती
जाय छे–तेमां संवर–निर्जरा तत्त्व आवी जाय छे. ने अशांतिनो सर्वथा अभाव थईने संपूर्ण शांति प्रगटे
कयांथी मळे? केमके “ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण.” परमां आत्मानी शांति छे ज नहि तो त्यांथी ते केम
मळे? चैतन्यना सर्वगुण–शांति–सुख–आनंद–प्रभुता वगेरे चैतन्यमां ज छे, त्यां शोधे तो ज ते मळे.
हाथ पग नथी तेथी शुं ते कांई दुःखी छे?–ना; हाथ–पग वगर ज तेओ सुखी छे, केमके हाथ पग ते
पग वगेरे अवयव तूटी गया होय, तो शुं ते अवयव तुटया तेने कारणे ते दुःखी छे? ना; “आ हाथ
पग मारा अवयव हता ने ते मारा सुखना साधन हता” एवी परना साधनपणानी जे मिथ्या
कल्पना करी राखी छे तेने लीधे ज ते दुःखी छे. समकिती–धर्मात्माने हाथ पग वगेरे