Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : प :
बधा अवयवो होय तो पण ते अवयवोने ते पोतानुं स्वरूप मानता नथी, तेने पोतानुं साधन मानता
नथी; ए रीते तेमांथी साधनपणानी द्रष्टि छूटी गई होवाथी तेनी द्रष्टिमां (श्रद्धामां) तो संथारो ज थई
गयो छे. ते जाणे छे के मारा अवयवो तो ज्ञानादि अनंत गुणो ज छे. ने ते ज मारा सुखना साधन छे.
आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखाववा माटे अहीं तेनी शक्तिओनुं वर्णन करे छे.
समयसारमां आत्माने “ज्ञानस्वरूप” कहीने ओळखाव्यो छे; जो के ज्ञान साथे तेना अविनाभावी
बीजा अनंत धर्मो पण छे तेथी ज्ञानमात्र आत्माने “अनेकांतपणुं” स्वयमेव प्रकाशे छे. आ वात
सांभळीने जिज्ञासु शिष्यने प्रश्न ऊठे छे के प्रभो! अनंतधर्मोवाळा आत्माने ‘ज्ञानमात्रपणुं’ कई रीते
छे? जे जीव आत्माने लक्षमां लईने तेनो अनुभव करवा मांगे छे तेने प्रसिद्धरूप ज्ञानलक्षणद्वारा
आत्मानी प्रसिद्धि कराववामां आवे छे. खरेखर कांई लक्षण अने लक्ष्य जुदा नथी, ज्ञान अंतरमां वळ्‌युं
त्यां तेणे पोते लक्षणरूप थईने लक्ष्यने प्रसिद्ध कर्युं. जे जीव आवा आत्माने अनुभवे छे तेने तो कांई
लक्ष्य–लक्षणना भेद पाडीने कहेवानी जरूर नथी. पण जे अनुभव करवा मांगे छे तेने ‘ज्ञानमात्र
आत्मा’ एम कहीने भगवान आत्मानी प्रसिद्धि करावे छे. अनंतगुणनो निधान आत्मा छे, ते निधिने
पोताना अंतरमां देखीने ज्ञानी तेने भोगवे छे. जेम कोई मनुष्य मोटुं निधान प्राप्त करीने पछी
एकांतमां तेने भोगवे छे, तेम धर्मात्मा पोताना अंतरमां चैतन्यनिधान प्राप्त करीने पछी एकांतमां
एटले अंतर्मुख थईने तेने आनंदथी भोगवे छे–वारंवार अनुभवे छे.
–आवा आनंदना अनुभवनी जे जीवने जिज्ञासा जागी छे ते जीव पात्र थईने जिज्ञासाथी पूछे
छे के प्रभो! आत्मामां अनंतधर्मो छे, छतां तेने ज्ञानमात्र ज केम कहो छो? एवा जिज्ञासु शिष्यने
समजाववा आचार्यदेव कहे छे के भाई, सांभळ! आत्मानी जे ज्ञप्तिक्रिया थाय छे तेमां अनंतधर्मोनो
समुदाय भेगो ज परिणमे छे. एकलुं ज्ञान जुदुं नथी परिणमतुं परंतु ते ज्ञाननी साथे साथे ज आनंद,
श्रद्धा, जीवत्व वगेरे अनंत गुणोनुं परिणमन भेगुं ज छे. एक ज्ञानगुणने जुदो लक्षमां लईने धर्मी
नथी परिणमतो परंतु ज्ञान साथेना अनंत धर्मोने अभेदपणे लक्षमां लईने धर्मीजीव एक ज्ञप्तिमात्र
भावरूपे परिणमे छे. अनंतधर्मोने पोतामां समावीने एक ज्ञप्तिक्रियापणे परिणमतो होवाथी आत्माने
स्वयमेेव ज्ञानमात्रपणुं छे. आवी ज्ञानक्रियापणे आत्मा प्रकाशे छे. शरूआतमां ज “नमो
समयसाराय द्वारा शुद्धात्माने नमस्कार करतां कह्युं हतुं के ते शुद्धात्मा स्वानुभूतिरूप क्रिया वडे
प्रकाशमान छे; रागवडे के वाणीवडे आत्मा प्रकाशमान थतो नथी,–प्रसिद्ध थतो नथी, पण अंतर्मुख
स्वानुभूतिवडे एटले के ज्ञप्तिक्रिया वडे ज भगवान आत्मा प्रकाशमान थाय छे, प्रसिद्ध थाय छे,
अनुभवमां आवे छे.
आत्मानी ज्ञप्तिक्रियामां स्वयमेव अनंतशक्तिओ ऊछळे छे, आत्माना अनुभवमां एकसाथे
अनंतशक्तिओ परिणमे छे, निर्मळपणे ऊछळे छे.–केवी केवी शक्तिओ ऊछळे छे तेनुं वर्णन हवे करशे.
गुरुदेवनुं शांतरसझरतुं अद्भुत प्रवचन
सांभळीने सौ श्रोताजनो आनंदविभोर बन्या
हता...अमृतरसनी वर्षाथी सौनां हृदय तृप्त अने
प्रसन्न हता...प्रवचन पूरुं थतां ज हर्षभर्या जय
जयकारपूर्वक पू. बेनश्रीबेने नीचेनी भक्ति गवडावी
हती–
आज मंगळमय दिन ऊग्यो
आज अमृत वरस्या मेहरे...गुरुजीनी वाणी छूटी रे