नथी; ए रीते तेमांथी साधनपणानी द्रष्टि छूटी गई होवाथी तेनी द्रष्टिमां (श्रद्धामां) तो संथारो ज थई
गयो छे. ते जाणे छे के मारा अवयवो तो ज्ञानादि अनंत गुणो ज छे. ने ते ज मारा सुखना साधन छे.
बीजा अनंत धर्मो पण छे तेथी ज्ञानमात्र आत्माने “अनेकांतपणुं” स्वयमेव प्रकाशे छे. आ वात
सांभळीने जिज्ञासु शिष्यने प्रश्न ऊठे छे के प्रभो! अनंतधर्मोवाळा आत्माने ‘ज्ञानमात्रपणुं’ कई रीते
छे? जे जीव आत्माने लक्षमां लईने तेनो अनुभव करवा मांगे छे तेने प्रसिद्धरूप ज्ञानलक्षणद्वारा
आत्मानी प्रसिद्धि कराववामां आवे छे. खरेखर कांई लक्षण अने लक्ष्य जुदा नथी, ज्ञान अंतरमां वळ्युं
त्यां तेणे पोते लक्षणरूप थईने लक्ष्यने प्रसिद्ध कर्युं. जे जीव आवा आत्माने अनुभवे छे तेने तो कांई
लक्ष्य–लक्षणना भेद पाडीने कहेवानी जरूर नथी. पण जे अनुभव करवा मांगे छे तेने ‘ज्ञानमात्र
आत्मा’ एम कहीने भगवान आत्मानी प्रसिद्धि करावे छे. अनंतगुणनो निधान आत्मा छे, ते निधिने
पोताना अंतरमां देखीने ज्ञानी तेने भोगवे छे. जेम कोई मनुष्य मोटुं निधान प्राप्त करीने पछी
एटले अंतर्मुख थईने तेने आनंदथी भोगवे छे–वारंवार अनुभवे छे.
समजाववा आचार्यदेव कहे छे के भाई, सांभळ! आत्मानी जे ज्ञप्तिक्रिया थाय छे तेमां अनंतधर्मोनो
समुदाय भेगो ज परिणमे छे. एकलुं ज्ञान जुदुं नथी परिणमतुं परंतु ते ज्ञाननी साथे साथे ज आनंद,
श्रद्धा, जीवत्व वगेरे अनंत गुणोनुं परिणमन भेगुं ज छे. एक ज्ञानगुणने जुदो लक्षमां लईने धर्मी
नथी परिणमतो परंतु ज्ञान साथेना अनंत धर्मोने अभेदपणे लक्षमां लईने धर्मीजीव एक ज्ञप्तिमात्र
भावरूपे परिणमे छे. अनंतधर्मोने पोतामां समावीने एक ज्ञप्तिक्रियापणे परिणमतो होवाथी आत्माने
स्वानुभूतिवडे एटले के ज्ञप्तिक्रिया वडे ज भगवान आत्मा प्रकाशमान थाय छे, प्रसिद्ध थाय छे,
अनुभवमां आवे छे.
हता...अमृतरसनी वर्षाथी सौनां हृदय तृप्त अने
जयकारपूर्वक पू. बेनश्रीबेने नीचेनी भक्ति गवडावी
हती–
आज अमृत वरस्या मेहरे...गुरुजीनी वाणी छूटी रे