Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : ७ :



श्रावण सुद पूनम ए ७०० मुनिवरोनी
रक्षानो अने वात्सल्यनो महान दिवस; ते
दिवसे पू. गुरुदेवे समयसारनी ४१३मी
गाथा उपर प्रवचन कर्युं. जेठ सुद पूनम बाद
आ श्रावण सुद पूनमे गुरुदेवनुं पहेल–वहेलुं
प्रवचन सांभळतां, बे मासना तृषातूर
जिज्ञासुओ खूब हर्षित थया हता. ते प्रवचन
अहीं आपवामां आव्युं छे. बबे मासथी
तरसता जिज्ञासुओने आ प्रवचनद्वारा
धर्मरसनुं पान करावीने तृप्त कर्या
छे...प्रवचनमां गुरुदेवनी धर्मवत्सलता देखीने
प्रमोद थाय छे. परम वत्सलताथी गुरुदेव
भव्य जीवोने धर्ममां जोडे छे के : हे वत्स!
शुद्ध आत्मस्वरूपने जाणीने तेनी श्रद्धा–ज्ञान–
रमणतामां ज तुं तारा आत्माने जोड.
स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने
ते मोक्षमार्गमां ज तारा आत्माने स्थाप. रे
चैतन्यप्रभु! तारी प्रभुता तारा चैतन्य–
धाममां ज छे...तेमां अंतर्मुख था: त्यां ज
तारा सर्व गुणो छे...ने त्यां ज तारो
मोक्षमार्ग छे...एनाथी बहार बीजे कयांय
तारो मोक्षमार्ग नथी.