: ८ : आत्मधर्म : २०३
आत्मा एकलो ज्ञायक चिदानंद स्वरूप त्रिकाळ छे; तेनी अवस्थामां जे विकार के संयोग छे ते
तेनुं मूळ स्वरूप नथी. आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! आवा आत्मस्वरूपने जाणीने, तेनी ज श्रद्धा–
ज्ञान–रमणतामां तारा आत्माने जोड...स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने ते मोक्षमार्गमां
तारा आत्माने स्थाप. केमके तेना सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी. अंतरमां आवा आत्मस्वरूपने
जाण्या वगर व्रतादि शुभ क्रियाओने के देहनी क्रियाओने जे धर्म माने छे तेने मोक्षमार्गनी खबर नथी;
ते पोताना आत्माने मोक्षमार्गमां नथी जोडतो पण व्यवहारमां–रागमां जोडे छे एटले के संसारमार्गमां
ज जोडे छे; तेओ पोताना आत्माने अनुभवता नथी एटले तेमने धर्म के मुनिदशा होती नथी. ए
वात आचार्यदेव समयसारनी ४१३मी गाथामां समजावे छे–
बहुविधनां मुनिलिंगमां अथवा गृहीलिंगो विषे
ममता करे, तेणे नथी जाण्यो ‘समयना सार’ ने
जेओ खरेखर ‘हुं श्रमण छुं, हुं श्रमणोपासक श्रावक छुं’ एम द्रव्यलिंगमां ममकार वडे मिथ्या
अहंकार करे छे, एटले के व्रत–महाव्रतना विकल्पो अने देहनी क्रियाओमां ममकार करीने तेने ज जेओ
मोक्षमार्ग माने छे, ने तेने लीधे ज पोताने मुनि अगर श्रावक माने छे तेओ अनादिरूढ एवा
व्यवहारमां ज मूढ वर्ते छे, प्रौढविवेकवाळा निश्चय उपर तेओ अनारूढ वर्ते छे एटले के स्व–परनुं
भेदज्ञान करावनारा निश्चयस्वरूपने तेओ ओळखता नथी; आवा जीवो परमार्थसत्य एवा भगवान
समयसारने देखता नथी–जाणता नथी–अनुभवता नथी, एटले तेमने मोक्षमार्ग होतो नथी. मोक्षमार्ग
तो आत्माना स्वभावना आश्रये छे, कांई व्रतना विकल्पोना आश्रये मोक्षमार्ग नथी, के देहनी
दिगंबरदशा वगेरेना आश्रये मोक्षमार्ग नथी.
अहा, आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! एक विकल्प पण तने लाभरूप नथी, ते तने आश्रयरूप
नथी. तारो आश्रय तारा अनंतगुणमां छे, तेमां अंतर्मुख था...तेमां ज तारो मोक्षमार्ग छे. केमके–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण केवळी बोले एम, –जिनवर बोले एम,
प्रगट अनुभवो आतमा...निर्मळ करो सप्रेम...रे चैतन्यप्रभु?
प्रभुता तारी चैतन्यधाममां....
हे चैतन्यप्रभु! तारी प्रभुता तारा चैतन्यधाममां छे. तारो मोक्षमार्ग पण तारा चैतन्यधाममां
ज छे. तारो कोई गुण के मोक्षमार्ग कयांय बहार बीजाना आश्रये नथी. ज्यां चैतन्य छे त्यां ज तेना
सर्व गुणो छे. चैतन्यना गुणो चैतन्यमां छे, रागमां विकल्पमां के देहनी क्रियामां चैतन्यना कोई गुणो
नथी. भाई, त्यां तुं नथी; ज्यां तुं नथी त्यां तारा गुण केम होय? त्यां तारा गुणने न शोध.
चैतन्यमां अंतर्मुख थईने त्यां ज तारा गुणने शोध. चैतन्यमां ज तुं छो, ने तारा सर्वे गुणो तारामां ज
छे. आम जाणीने–
प्रगट अनुभवो आतमा...निर्मळ करो सप्रेम
अनंतगुण स्वरूप चैतन्यमूर्ति आत्मानो निर्मळ प्रेम करीने एटले के वीतरागी रुचि करीने तेने
प्रगटपणे अनुभवो.
आजे तो अकंपन आचार्य वगेरे ७०० मुनिओनी रक्षानो मोटो दिवस छे. विष्णुकुमार मुनिए
मोक्षमार्ग प्रत्येना परम वात्सल्यथी ७०० मुनिओनी रक्षा करी हती. ते मुनिओ केवा? के उपर कह्यो
तेवो आत्म–अनुभव करीने अंतरमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्मने साधनारा. अरे, मोक्षमार्गने
साधनारा मुनिवरो उपर आवो उपद्रव! ते देखतां वात्सल्यना रागने लीधे एक मुनिराजना मुखथी
‘हा..’एवो उद्गार नीकळी पडयो...एक क्षुल्लके विष्णुकुमार मुनिने ए उपद्रवनी वात करी. अने साथे
साथे एम पण कह्युं के आपने विक्रियाऋद्धि प्रगटी छे तेथी आप ते मुनिवरोनी रक्षा करवाने समर्थ
छो. श्री विष्णुकुमार मुनिने तो हजी खबर पण न हती के पोताने विक्रियाऋद्धि प्रगटी छे. अहा
मुनिवरो तो चैतन्यना आनंदमां