Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : :
मशगुल छे; आनंदधाममां पडेला ते मुनिवरोने बहारनी ऋद्धिनी दरकार पण कयां छे? चैतन्यनी
अचिंत्यऋद्धि पासे बहारनी ऋद्धिनो शुं महिमा! ऋद्धि प्रगटवानी अने ७०० मुनिओ उपरना घोर
उपद्रवनी वात सांभळतां, आंगळी लंबावीने ऋद्धिनी परिक्षा करी अने पछी वात्सल्यनी प्रधानताने
लीधे ठींगणा ब्राह्मणनुं रूप लईने ७०० मुनिवरोनी रक्षा करी ते रक्षानो आजे दिवस छे.
जुओ, विष्णुकुमारमुनिने मोक्षमार्गसाधक मुनिवरो प्रत्ये प्रमोद अने वात्सल्यनो भाव आव्यो
ने मुनिओनी रक्षा थई ते अपेक्षाए तेनी प्रसंशा थाय; परंतु तेमां जे शुभराग थयो ते कांई मोक्षमार्ग
नथी, ते राग कांई प्रशंसनीय नथी. चैतन्यना आनंदधाममांथी बहार नीकळीने जे रागनी वृत्ति ऊठी
तेने सारी केम कहेवाय? ते विष्णुकुमार धर्मात्मा पोते पण ते वृत्तिने भली के मोक्षना साधनरूप
मानता न हता; एटले तो पाछळथी तेनुं प्रायश्चित कर्युं, ने ते वृत्ति तोडीने, स्वरूपमां लीनतावडे
केवळज्ञान पाम्या. तेओ पोते ते वृत्ति तोडीने केवळज्ञान पाम्या, तेने बदले जे जीवो विष्णुकुमारमुनिना
उपरना द्रष्टांत उपरथी एम कहे छे के ‘आवो शुभराग ते धर्म छे.–केम के विष्णुमुनिने पण एवो
शुभराग आव्यो हतो माटे ते धर्म छे.’–तो एम माननारा जीवोए नथी तो विष्णुकुमारमुनिने
ओळख्या, नथी तो मोक्षमार्गने ओळख्यो, के नथी धर्मने ओळख्यो. मोक्षने साधतां वच्चे रागनी वृत्ति
आवी पडी–ते जुदी वात छे, अने ते रागनी वृत्तिने मोक्षनो मार्ग के मोक्षनुं साधन मानवुं ते जुदी
वात छे. जेम मुनिने देहनी दिगंबरदशा ज होय छे, पण ते दिगंबरदेह कांई मोक्षमार्ग नथी, ए ज रीते
वच्चे शुभवृत्ति आवे ते कांई मोक्षमार्ग नथी. जे जीव तेने मोक्षमार्ग माने छे तेणे आत्माने जाण्यो
नथी, तेणे निश्चयने जाण्यो नथी, तेने भेदज्ञान थयुं नथी, आचार्यदेव कहे छे के ते जीव अनादिना
रूढिगत एवा व्यवहारमां ज मूढ छे, अनादिनी रूढीथी बहार नीकळीने तेणे नवुं कांई नथी कर्युं.
अहा, मोक्षमार्ग तो शुद्धआत्माना ज आश्रये छे, तेने बदले मूढ जीवो मोहने लीधे रागमां ने
देहनी क्रियामां मोक्षमार्ग माने छे. सर्वज्ञ परमात्मा कहे छे के अरे जीवो! तमारो स्वभाव एक समयमां
परिपूर्ण, बहेद गुणोथी भरेलो छे, जेटला गुणो अमारामां (–सर्वज्ञमां) प्रगटया तेटला बधाय गुणो
तमारामां पण भर्या ज छे; तेने ओळखो, तेनो निर्मळ प्रेम करो अने तेमां ठरो...एमां ज विसामो छे
ने एमां ज मोक्षमार्ग छे. वच्चे विकल्प आवे तेमां विसामो नथी, ते शरणरूप नथी, ते मोक्षनुं कारण
नथी. शुद्धआत्माना ज आश्रये मोक्षमार्ग छे–एम हे जीवो! तमे जाणो.
–आवा आत्माश्रित मोक्षमार्गने जाणीने, आत्माना ज्ञान–ध्यानमां मस्त ७००–७०० मुनिवरो
ज्यारे एक साथे विचरता हशे–ए काळ केवो हशे!! एवा ७०० मुनिओना संघ उपर बलिराजाए
ज्यारे उपद्रव कर्यो त्यारे वात्सल्यने लीधे विष्णुमुनिने तेमनी रक्षानो विकल्प आव्यो...ने युक्तिथी
मुनिओनी रक्षा करी, बलिराजा वगेरेए पण माफी मांगी ने जैनधर्म धारण कर्यो. ए रीते आजे
मुनिरक्षानो मोटो दिवस छे, तेथी आजना मूरत माटे आ प्रवचन छे.
आ ४१३मी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के मुनिने महाव्रतनो विकल्प ऊठे ते पण द्रव्यलिंग
छे, ने ते विकल्पमां ममत्व करीने तेने जे मोक्षमार्ग माने ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे; मिथ्याद्रष्टिने अहीं
व्यवहारमूढ कह्यो छे. निश्चयनय प्रौढविवेकवाळो छे, एटले के तेनाथी परमार्थ वस्तुस्वरूप ओळखतां
स्व–परनुं भेदज्ञान थाय छे ने मोक्षमार्ग प्रगटे छे. माटे भगवाननो अने संतोनो उपदेश छे के हे
जीवो! निश्चयनय अनुसार आत्माना परमार्थ–स्वरूपने जाणीने तेमां आरूढ थाओ...ने अनादिना रूढ
एवा व्यवहारमां मूढता छोडो. विकल्प ते द्रव्यलिंग छे, तेमां ममत्व करे, तेनाथी लाभ माने, ते
अनादिथी संसारमां ज्यां हतो त्यांने त्यां ज ऊभो छे, ते संसारमार्गमांथी नीकळीने मोक्षपंथमां
आव्यो नथी. चेतनना गुण चेतनमां ज छे, चेतनना गुण विकारमां नथी. केमके–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण, केवळी भाखे एम;