Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २०३
प्रगट अनुभव आपणो,
निर्मळ करो सप्रेम रे चैतन्य प्रभु! प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां..
(पू. गुरुदेवना श्रीमुखे अध्यात्मनी मस्तीपूर्वक वैराग्यभरेली हलकथी गवातुं आ पद
सांभळतां श्रोताजनो मुग्धताथी डोलता हता.)
हे जीवो! तमारा चैतन्यमां ज तमारी प्रभुता छे, तेनी प्रीति करीने अनुभव करवो ते कर्तव्य
छे. राग तो तुच्छ छे. तमारी मोटप, तमारी महत्ता, तमारी प्रभुता तो चैतन्यमां ज छे; सुख–शांति–
आनंद जे कहो ते बधुं तमारा चैतन्यमां ज भरेलुं छे. अहा! आवुं चैतन्यधाम ए ज खरुं
विश्रामस्थान छे. देहमां के रागमां कयांय विसामो नथी, तेमां चैतन्यना कोई गुण नथी. माटे अंतर्मुख
थईने चैतन्यधाममां द्रष्टि करो, तेनी निर्मळ प्रीति करो ने तेनो अनुभव करो. तमारा चैतन्यनी प्रभुता
तमारा अनुभवमां ल्यो.
जेने पैसानी रुचि होय तेनी द्रष्टि कयां होय?–के ज्यांथी पैसा मळता होय त्यां तेनी द्रष्टि अने
प्रीति होय; तेम जेने धर्मनी रुचि होय तेनी द्रष्टि कयां होय? के ज्यांथी धर्म मळतो होय त्यां; धर्म मळवानुं
स्थान कयुं? धर्मनुं धाम आत्मा छे तेना उपर धर्मीनी द्रष्टि होय छे ने तेनो ज धर्मीने प्रेम होय छे; रागना
विकल्पनो प्रेम धर्मीने होतो नथी. जेने रागनो प्रेम छे तेने धर्मनो प्रेम नथी. रागनो प्रेम कहो के
व्यवहारमूढता कहो. शुद्धआत्मा ते कारणपरमात्मा छे, तेने कारण समयसार पण कहेवाय; अने तेना
आश्रये मोक्षना कारणरूप जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगटे ते रत्नत्रयपरिणत आत्माने पण
कारणसमयसार कहेवाय छे. जे जीव निश्चयस्वभावने जाणतो नथी ने व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग माने
छे ते जीव भले द्रव्यलिंगी दिगंबर साधु थईने पंचमहाव्रतादि पाळतो होय तोपण तेणे हजी
कारणसमयसारने जाण्यो नथी, तेने मोक्षमार्गनी खबर नथी. अने ज्यां कारणसमयसारनी खबर नथी त्यां
कार्यसमयसारनी प्राप्ति कयांथी थाय? मोक्षमार्गनी ज ज्यां खबर नथी त्यां मोक्षनी प्राप्ति कयांथी थाय?
७०० मुनिओनी रक्षा थई ते हिसाबे वात्सल्यना विकल्पनी प्रशंसा करी; पण ते
विष्णुकुमारमुनिने मुनिदशामांथी ऊतरीने जे राग थयो ते कांई प्रशंसनीय नथी. विष्णुकुमार पोते ते
रागने प्रशंसनीय मानता न हता, एटले तो पाछळथी तेनुं प्रायश्चित करीने फरी मुनि थया ने विकल्प
तोडी, स्वरूपमां ठरी केवळज्ञान पामी, सिद्ध थया. वात्सल्यना विकल्पवडे नहीं, परंतु विकल्पने छेदीने
स्वरूपमां ठरीने तेओ परमात्मा थया. आ ज मोक्षनो उपाय छे, बीजो कोई मोक्षनो उपाय नथी.
कारणसमयसार एटले शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमेलो आत्मा, तेना वगर
कार्यसमयसारनी प्राप्ति थती नथी. मोक्षनुं कारण त्रिकाळी चिदानंदस्वभावना आश्रये ज प्रगटे छे,
तेना सिवाय बीजा कोई विकल्पना आश्रये के देहनी क्रियाना आश्रये मोक्षनुं कारण प्रगटतुं नथी.
भगवाने आवो (शुद्धात्माना आश्रयरूप) मोक्षमार्ग साध्यो ने ए ज मार्ग जगतने देखाडयो: हे
जीवो! मोक्षनो मार्ग आ ज छे, बीजो नथी. जेम भगवाननो आत्मा अने आ आत्मा स्वभावे सरखा
छे तेम मोक्षनो उपाय पण बंनेने माटे सरखो ज छे.
अरूप एवो आतमा तनमां करे निवास.
ते ज शुद्ध परमातमा, बीजो भेद न खास.
आ जड देहनी मध्यमां अरूपी चैतन्यमूर्ति आत्मा शुद्ध परमात्मा जेवो बिराजी रह्यो छे;
सिद्धपरमात्मामां अने आ जीवमां परमार्थे कांई भेद नथी, खास कांई भेद नथी. पर्यायमां जे भेद छे ते
गौण छे एटले के खास–मुख्य नथी. भाई! अंतरना स्वभावथी जो तारामां ने सिद्धपरमात्मामां
जराय फेर नथी. सिद्ध भगवान जेवो ज आत्मा आ देहमां वसी रह्यो छे, पण देहथी ते तद्न जुदो छे.
जड देहना अवयवो आत्माने नथी. हाथ–पग–आंख कान वगेरे जड शरीरना अवयवो छे, ते कांई
आत्माना अवयवो नथी, ने आत्मा ते अवयवोथी कांई काम लेतो नथी. आत्माना अवयवो तो ज्ञान,
श्रद्धा, आनंद वगेरे छे, ने ते अवयवोनों उपभोग आत्मा करे छे. असंख्य प्रदेशो ने ज्ञानादि अनंत
गुणोरूप जे अवयवो तेनो अवयवी