Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : ११
:आत्मा छे. हाथ–पग वगेरे जड अवयवोनो अवयवी आत्मा नथी. अरूपी आत्माना अवयवो रूपी
केम होय?–न ज होय. अवयव अने अवयवी एक ज जातना होय. अरे, विकल्प ते पण खरेखर
चैतन्यमूर्ति आत्मानो अवयव नथी. जे जेनो खरो अवयव होय ते तेनाथी छूटो केम पडे? विकार तो
आत्माथी छूटो पडी जाय छे, अने विकार छूटो पडी जवा छतां आत्मा तो अखंड रहे छे. तेनुं कोई अंग
खंडित थई जतुं नथी. माटे विकार ते आत्मानुं खरुं अंग नथी. जो विकार ते आत्मानुं अंग होय तो
तेनो नाश थतां आत्माने हीनांगपणुं (अधूरांपणुं) थई जवुं जोईए.–पण एम थतुं नथी, केमके विकार
ते आत्माना स्वभावनुं अंग नथी, ते तो छठ्ठी आंगळी जेवो उपाधिरूप छे.
जे पोताना ज्ञानादि अंगोने जाणतो नथी ने विकल्प के ईंद्रियो वगेरे परना आश्रयथी लाभ
लेवा जाय छे ते खरेखर पोताने अपंग–नमालो माने छे. लाकडी वगेरेनो आश्रय कोण ल्ये?–के जेना
अंगमां ताकात ओछी होय ते; तेम मोक्षमार्गने माटे परनो आश्रय कोण माने? के जे पोताना
आत्माने शक्तिहिन मानतो होय ते; पोताना आत्माने हीनशक्तिवाळो माने ने परना आश्रये
मोक्षमार्ग साधवा मांगे तेने कदी मोक्षमार्ग सधाय नहि. अनंतगुणथी परिपूर्णर् चैतन्य भगवान छे
तेना आश्रये ज मोक्षमार्गनी सिद्धि थाय छे.
चिदानंदस्वरूप आत्माने तो जेओ जाणता नथी ने तेनाथी बहार रागमां के देहनी क्रियामां
पोतापणुं मानीने तेमां मिथ्या अहंभाव करे छे अथवा तेने मोक्षनुं साधन माने छे (अने जेने
पोताना मोक्षनुं साधन माने तेमां ममत्व कर्या वगर रहे ज नहि, एटले देहादिनी क्रियाने के रागने
मोक्षनुं साधन माननारा तेमां ममत्व करे ज छे) तेओ मोक्षमार्गथी बहार, व्यवहारमां मिथ्याद्रष्टि छे.
आचार्यप्रभु समजावे छे के अरे भाई, तारी प्रगट दशानो विलास तारा गुणमांथी आवे के बहारथी?
शुं शरीरना अवयवोमांथी तारी निर्मळ दशा आवे? शरीर तो जड छे, एनी तो राख थाय छे. तेमांथी
तारी दशा आवे नहि.–तो शुं रागमांथी तारी निर्मळ दशा आवे?–ना; राग तो आकुळता छे, दोष छे,
ए तो नवो आगंतुक भाव छे, ए कांई स्वभावना घरनो भाव नथी; एमांथी स्वभावदशा आवे
नहि. प्रभु! तारी प्रगट दशा चैतन्यमांथी ज उल्लसे अने विलसे एवो तुं छो. तारा चैतन्यमां ज एवी
अचिंत्य ताकात छे के तेने कोईनी ओशयाळ करवी पडे एवुं नथी. एने बदले तुं रागमांथी के देहमांथी
तारी चैतन्यदशा उल्लसाववा के विलसाववा मांग–ते तो तारी खोटी भ्रमणा छे.
जुओ, आ देह के ईन्द्रियो ते कोई पण आत्माने साधन नथी. ते आत्माथी अत्यंत जुदा छे,
एटले आत्मा हाथ–पग वगेरेने हलावी शके के तेने पोताना सुखनुं साधन बनावी शके–एम बनतुं
नथी. हाथ–पग वगेरे न होय तो ते न होवाने कारणे जीव दुःखी छे–एम नथी, अने हाथ–पग वगेरे
होय तो ते कांई सुखनुं साधन थाय छे–एम पण नथी. जेमके–
सिद्धभगवानने हाथ–पग वगेरे अवयवो नथी, तो शुं ते न होवाने कारणे तेओ कांई दुःखी
छे?–ना; केम के हाथ–पग वगेरे अवयवो कांई आत्मानां नथी, अने ते कांई आत्माना सुखना साधन
नथी, के तेना अभावमां आत्माने दुःख थाय. सिद्धभगवंतो हाथ–पग वगर ज स्वयमेव सुखी छे.
निगोदना जीवने पण हाथ–पग–आंख वगेरे अवयवो नथी; जेम सिद्धभगवंतोने हाथ–पग
वगेरे न होवा ते कांई तेमना दुःखनुं कारण नथी, तेमनो मोह ज तेमना दुःखनुं कारण छे.
कोईना हाथ–पग वगेरे अवयवो कोई रोगो वगेरेना कारणे गळी गया होय, के कपाई गया
होय तो शुं ते अवयवो कपाया ते कारणे तेने दुःख छे? अने ते अवयवो होत तो तेने साधन
बनावीने सुखी थात एम छे? ना, ते जड अवयवो आत्माना साधन हता ज नहि. ते अवयवोनो
संयोग हो के न हो, बंने परिस्थितिमां ते आत्माना सुखनुं साधन छे ज नहीं.
ईन्द्र वगेरे देवो अगर मनुष्यो, जेमने हाथ–पग वगेरे अवयवो बराबर छे तेने पण शुं ते अवयवो
सुखना साधन थाय छे? ना; अज्ञानी भ्रमथी ज माने छे के आ मारा अवयवो छे ने हुं तेनो उपयोग