
केम होय?–न ज होय. अवयव अने अवयवी एक ज जातना होय. अरे, विकल्प ते पण खरेखर
चैतन्यमूर्ति आत्मानो अवयव नथी. जे जेनो खरो अवयव होय ते तेनाथी छूटो केम पडे? विकार तो
आत्माथी छूटो पडी जाय छे, अने विकार छूटो पडी जवा छतां आत्मा तो अखंड रहे छे. तेनुं कोई अंग
तेनो नाश थतां आत्माने हीनांगपणुं (अधूरांपणुं) थई जवुं जोईए.–पण एम थतुं नथी, केमके विकार
ते आत्माना स्वभावनुं अंग नथी, ते तो छठ्ठी आंगळी जेवो उपाधिरूप छे.
अंगमां ताकात ओछी होय ते; तेम मोक्षमार्गने माटे परनो आश्रय कोण माने? के जे पोताना
आत्माने शक्तिहिन मानतो होय ते; पोताना आत्माने हीनशक्तिवाळो माने ने परना आश्रये
मोक्षमार्ग साधवा मांगे तेने कदी मोक्षमार्ग सधाय नहि. अनंतगुणथी परिपूर्णर् चैतन्य भगवान छे
तेना आश्रये ज मोक्षमार्गनी सिद्धि थाय छे.
पोताना मोक्षनुं साधन माने तेमां ममत्व कर्या वगर रहे ज नहि, एटले देहादिनी क्रियाने के रागने
मोक्षनुं साधन माननारा तेमां ममत्व करे ज छे) तेओ मोक्षमार्गथी बहार, व्यवहारमां मिथ्याद्रष्टि छे.
आचार्यप्रभु समजावे छे के अरे भाई, तारी प्रगट दशानो विलास तारा गुणमांथी आवे के बहारथी?
शुं शरीरना अवयवोमांथी तारी निर्मळ दशा आवे? शरीर तो जड छे, एनी तो राख थाय छे. तेमांथी
ए तो नवो आगंतुक भाव छे, ए कांई स्वभावना घरनो भाव नथी; एमांथी स्वभावदशा आवे
नहि. प्रभु! तारी प्रगट दशा चैतन्यमांथी ज उल्लसे अने विलसे एवो तुं छो. तारा चैतन्यमां ज एवी
अचिंत्य ताकात छे के तेने कोईनी ओशयाळ करवी पडे एवुं नथी. एने बदले तुं रागमांथी के देहमांथी
तारी चैतन्यदशा उल्लसाववा के विलसाववा मांग–ते तो तारी खोटी भ्रमणा छे.
नथी. हाथ–पग वगेरे न होय तो ते न होवाने कारणे जीव दुःखी छे–एम नथी, अने हाथ–पग वगेरे
होय तो ते कांई सुखनुं साधन थाय छे–एम पण नथी. जेमके–
नथी, के तेना अभावमां आत्माने दुःख थाय. सिद्धभगवंतो हाथ–पग वगर ज स्वयमेव सुखी छे.
बनावीने सुखी थात एम छे? ना, ते जड अवयवो आत्माना साधन हता ज नहि. ते अवयवोनो
संयोग हो के न हो, बंने परिस्थितिमां ते आत्माना सुखनुं साधन छे ज नहीं.