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प्रयोजन साधवुं होय ते मनुष्य राजाने राजी करवा माटे वच्चे बीजा पासे अटकतो नथी. सीधो राजानी
समीपता करे छे, ने तेने सर्व प्रकारे रीझवीने समुद्धि पामे छे...आम राजानी समीपता ते मनुष्यने
सुखसमृद्धिनुं कारण छे, पण ते माटे राजाने राजी करतां आवडवुं जोईए.–तेम चैतन्यराजा पासेथी
जेने पोताना हितरूप प्रयोजन साधवुं छे ते मोक्षार्थी जीव, जगतनी अनुकूळता के प्रतिकूळता सामे न
जोतां सीधो चैतन्यराजानी समीपता करे छे ने सर्व प्रकारे तेनी सेवा–आराधना करे छे...बीजे क््यांय
अटक्या वगर सर्व प्रकारना प्रयत्नथी चैतन्यराजाने रीझवीने ते जीव मोक्षमार्गने प्राप्त करे छे. आ
रीते चैतन्यराजानी समीपता ते जीवने मोक्ष सुखनुं कारण छे. पण ते माटे चैतन्यराजाने रीझवतां
आवडवुं जोईए.
पण आ रीते चैतन्यने साधुं–एम तेने उत्साह जागे छे. चैतन्यने साधवामां हेतुभूत एवा संत–
गुरुओने पण ते आत्मार्थी जीव सर्व प्रकारनी सेवाथी राजानी जेम रीझवे छे ने संतगुरुओ तेना उपर
प्रसन्न थईने तेने आत्मप्राप्ति करावे छे. मोक्षार्थी जीवना अंतरमां एक ज पुरुषार्थ माटे घोलन छे के
कई रीते हुं मारा आत्माने साधुं?–कई रीते मारा आत्माना–श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रने प्रगट करुं?
आत्मामां सतत आवी धून वर्तती होवाथी ज्यां संतगुरुए तेना श्रद्धा–ज्ञानादिनो उपाय बताव्यो के
तरत ज तेना आत्मामां ते प्रणमी जाय छे. जेम धननो अर्थी मनुष्य राजाने देखतां ज प्रसन्न थाय छे
अने तेने विश्वास आवे छे के हवे मने धन मळशे ने मारी दरिद्रता टळशे; तेम आत्मानो अर्थी मुमुक्षु
जीव आत्मप्राप्तिनो उपाय दर्शावनारा संतोने देखतां ज परमप्रसन्न थाय छे.....तेनो आत्मा उल्लसी
जाय छे के अहा, मने मारा आत्मानी प्राप्ति करावनार संत मळ्या...हवे मारा संसारदुःख टळशे.....ने
मने मोक्षसुख मळशे. आवो उल्लास अने विश्वास लावीने, पछी संतधर्मात्मा जे रीते चैतन्यने
साधवानुं कहे छे ते रीते समजीने पोते सर्व उद्यमथी चैतन्यने जरूर साधे छे.
आत्मानी मुक्ति केम थाय तेनो ज अर्थी–एवा जीवने माटे आ वात छे. भाई, पहेलां तुं साचो
आत्मार्थी था! देहनुं–रागनुं–माननुं के जगतनी बीजी कोई वस्तुनुं मारे प्रयोजन नथी, मारे तो एक
मारा आत्मानुं ज प्रयोजन छे, कई रीते हुं मारा आत्मानो आनंद अनुभवुं–ए ज एक मारे जोईए
छे,–एम खरेखरी जिज्ञासा प्रगट करीने जे जीव आत्मार्थी थयो तेने आत्मानो अनुभव थाय ज....
तेनो उद्यम आत्मा तरफ वळे ज.–परंतु जेना हृदयमां आत्मा सिवाय बीजुं कोई पण शल्य होय ते
जीव क््यांकने क््यांक (–देहमां, रागमां, पुण्यमां, मानमां के छेवट शास्त्रना जाणपणामां) अटकी जाय
छे, एटले आत्माने साधवा माटेनो उद्यम ते करी शकतो नथी.. जे जीव आत्मानो अर्थी थाय ते
आत्मज्ञपुरुषोनो सत्समागम करीने वारंवार परिचयपूर्वक तेमनी पासेथी आत्मानुं स्वरूप जाणीने
तेनो निर्णय करे,–अंर्तअनुभवपूर्वक तेनी श्रद्धा करे.....आ ज आत्मार्थ साधवानी एटले के
सम्यग्दर्शन प्रगट करवानी रीत छे.
आत्मानो ज अर्थी होवो जोईए, बीजा शेनोय नहीं. आत्मानो अर्थी थईने तेने साधवा मांगे ते जरूर
साधी शके. पोताना ज घरनी वस्तुने (अरे, पोते ज) पोते केम न साधी शके? अंतरमां रुचि करीने
पोताना तरफ वळे ते जरूर साधी शके. आत्मानुं ज्ञान–श्रध्धान करीने तेमां
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ठरवुं –ते एक ज तेने साधवानी रीत छे, बीजुं कोई साधन के बीजी कोई रीत नथी.
आपनुं नवा वर्षनुं लवाजम रूा. ४–०० वहेलासर भरी
बचवा आपनुं लवाजम जेम बने तेम वेलासर मोकलीने
लवाजम भेगुं करीने तेनी सूचना सोनगढ जेम बने तेम
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निर्मळपर्यायनी साथे आत्माने अभेद करीने कह्युं छे.
लायकात जोईने आचार्यदेवे आ वात करी छे.
विहर...आ ज मोक्षनो पंथ छे.
वा अन्य को रीत जाव,पण परिग्रह नथी मारो खरे.
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सद्गृहस्थ तरफथी योग्य लागे ते मुजब भेट अगर अर्ध मुल्यथी आपवामां
आवशे.
प्रसिद्ध थयेल सत्साहित्यनी नामावलिनी जरूर होय तेमणे अहींथी पोस्ट द्वारा
मंगावी लेवी.
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आज महासौभाग्य अने गौरवनी वात छे के अमो आजनी
लोकोने अनादिथी व्यवहारनो पक्ष छे, शास्त्रोमां पण ठामठाम
आपे आपना आत्माने जगाडयो एटलुं ज नहि पण
अंतमां अमो अंतःकरणपूर्वक आपनुं तथा आपना संघनुं
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क्षणभंगुरता देखीने तो, क्षणनाय विलंब विना वेगपूर्वक ए हितमार्गे वळवा जेवुं छे.
मोटा सुपुत्र कुंवर प्रभाचंद्रजी (केप्टन,
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अपनो स्वरूप शुद्ध अनुभवे आठों जाम, आनंदको धाम गुणग्राम विसतारी है;
परम प्रभाव परिपूरन अखंड ज्ञान, सुखको निधान लखि आन रीति डारी है,
ऐसी अवगाढ गाढ आई परतीति जाके, कहे दीपचंद ताको वंदना हमारी है.
देखीने जेणे बीजी रीत छोडी दीधी छे–आवी अवगाढ द्रढ प्रतीति थई छे तेने अमारी वंदना छे.
अमल अरूपी अज चेतन चमत्कार, समैसार साधे अति अलख अरधिनी;
गुणको निधान अमलान भगवान जाको प्रत्यक्ष दिखावे जाकी महिमा अबाधिनी,
एक चिदरूपको अरूप अनुसरे ऐसी आतमिक रुचि है अनंत सुख साधिनी.ा ६ा
भावार्थ:– आत्मिक रुचि अनंत सुखने साधनारी छे: केवी छे ते रुचि? परम अखंड
आवी आत्मरुचि अनंत सुखने साधनारी छे.
सकित अनंत को विचार करे, बारबार, परम अनुप निज रूपको उधारिनी;
सुखको समुद्र चिदानंद देखे घटमांहि, मिटे भव बाधा मोक्षपंथकी विहारिनी,
दीप जिनराज सो सरूप अवलोके ऐसी, संतनकी मति महामोक्ष अनुसारिनी.ा ७ा