Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्मना अंकनो खास वधारो
श्री जिनवाणीदातार गुरुदेवाय नम:
परम आनंदना पिपासु
जीवने संतो चैतन्यनो–
अध्यात्मरस पीवडावे छे.
आसो सुद पूर्णिमा: आजे जिज्ञासुओने माटे
आनंदनो सोनेरी दिवस छे...गुरुदेवना मंगलमय
प्रवचनोनी श्रुतधारा आजे शरू थाय छे...आ प्रवचनो
द्वारा गुरुदेव पिपासु जीवोने आनंदमय अध्यात्मरसनुं
पान करावीने तेओनी तृषा मटाडे छे...अंतरमां
जयनादपूर्वक श्रोताजनो अध्यात्मरसने झीलीने तृप्त
थाय छे...भारतना हजारो जिज्ञासुओनां हैयां जेनी राह
जोई रह्या हता ते अध्यात्मरसनां झरणां गुरुदेवे
वहेवडाववा शरू कर्या छे. “आत्मधर्म” ना आ खास
वधाराद्वारा जिज्ञासुओने तेनी प्रसादीनुं रसपान करतां
जरूर आनंद थशे आ मंगल प्रसंगे गुरुदेवने अतिशय
भक्तिपूर्वक नमस्कार करीए छीए. जय हो.....भवछेदक
गुरु–वाणीनो!