Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म: २०४
आ प्रवचनसारनी ७२मी गाथा छे. आ प्रवचनसारना कर्ता भगवान
कुंदकुंदाचार्यदेव छे, तेमना संबंधमां श्री अमृतचंद्राचार्यदेव कहे छे के तेमने भवसमुद्रनो
किनारो अत्यंत नजीक आवी गयो छे, अल्पकाळमां तेओ भवने छेदीने मोक्ष पामवाना
छे.–आवा भवछेदक पुरुषनी वाणी छे, ते वाणी पण भवछेदक छे. भवनो छेद करवानो
उपाय आ वाणी बतावे छे.
ज्ञानानंदस्वभावने नमस्कार करीने, तथा अनेकान्तमय वाणीने नमस्कार करीने
प्रवचनसारनी शरूआत करतां आचार्यदेव कहे छे के परमानंदरूपी सुधारसना पिपासु
भव्यजीवोने माटे आ प्रवचनसारनी टीका रचाय छे. जेने चैतन्यना परमआनंदनी ज
पिपासा छे, जगतनी बीजी कोई लप जेनां अंतरमां नथी, अरे! अमारा चैतन्यनुं
अमृत अमारा अंतरमां ज छे–एम जेनी जिज्ञासानो दोर आत्मा तरफ वळ्‌यो छे, एवा
भव्यजीवोना आनंद माटे–हितने माटे आ टीका रचवामां आवे छे. जुओ, आ श्रोतानी
जवाबदारी बतावी; श्रोता केवो छे? के चैतन्यना परमानंदरूपी अमृतनो ज पिपासु छे,
ए सिवाय संसारनी कोई चीजनो, माननो, लक्ष्मीनो, पुण्यनो, के रागादिनो पिपासु जे
नथी, आवा जिज्ञासुश्रोताने माटे आ “तत्त्वप्रदीपिका” रचाय छे. तरता पुरुषनी आ
वाणी भवछेदक छे.
काम एक आत्मार्थनुं,
बीजो नहि मन रोग.
जेना अंतरमां एक आत्मार्थ साधवा सिवाय बीजी कोई तमन्ना नथी, आत्माने
साधवानी ज तमन्ना छे, एवा आत्मार्थी जीवोने माटे आचार्यभगवान आ शास्त्र रचे
छे. आ शास्त्रद्वारा आचार्यदेव परमानंदना पिपासु भव्यजीवने यथार्थ तत्त्वोनु स्वरूप
समजावे छे, –ज्ञान अने ज्ञेय तत्त्वोनुं यथार्थस्वरूप समजतां भेदज्ञानज्योति प्रगटे छे
ने जीव परम आनंदने पामे छे.
आटला उपोद्घात पछी हवे मूळ अधिकार शरू थाय छे.
(जेठ सुद १४ना रोज प्रवचनसार गा. ७१ सुधी वंचायेल, त्यारबाद आजे
आसो सुद १पना रोज प्रवचनसार गा. ७२थी शरू थाय छे.)
जगतना छ द्रव्योमां आ आत्मा ज्ञानतत्त्व छे, विशुध्ध ज्ञानदर्शनस्वभावी
आत्मा छे तेना स्वभावमां ज वास्तविक सुख छे; ए सिवाय शुभ के अशुभ
परिणाममां वास्तविक सुख नथी. परमानंदरूप जे ज्ञानतत्त्व छे तेमां शुभ के अशुभ